Wednesday, April 9, 2014

साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों और प्रबुद्ध नागरिकों की मतदाताओं से अपील


(यह अपील का प्रारूप है जिसे साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों और प्रबुद्ध नागरिकों को भेजा गया है. जितने लोग अपीलकर्ता के रूप में अपने नाम की सहमति देंगे उनके नाम से यह पर्चा छपवाया जायेगा.  सहमति यहाँ दी जा सकती है. )


बदलो नीति बदलो राज, संसद में जनता की आवाज

सांप्रदायिक उन्माद, अन्याय, अवसरवाद और लूट की राजनीति को शिकस्त दें
जनता के बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए माले को वोट दें

महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी व प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर रोक लगाएं
जनता के लोकतांत्रिक आंदोलनों को मजबूत बनाएं, आरा से राजू यादव को जिताएं

मतदाता बंधुओ,
इस लोकसभा चुनाव में देश के पूंजीपति इस बार सीधे अपने पसंद का प्रधानमंत्री बनाने के अरबों-खरबों रुपये खर्च कर रहे हैं। उनको उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे, तो उनको फायदा पहुंचाने वाली नीतियों को बर्बरता से लागू करेंगे। इसी कारण पूंजीवादी मीडिया गुजरात में जनता के विकास के झूठे माॅडल का दिन-रात शोर मचा रही है। सवाल यह है कि क्या हम 2002 के राज्य प्रायोजित गुजरात जनसंहार को भूल सकते हैं? क्या हम देश बेचने को देश प्रेम कहेंगे, क्या अल्पसंख्यकों, दलितों, गरीबों के कत्लेआम को राष्ट्रवाद कहेंगे, क्या आदिवासियों और किसानों की जमीन को हड़पकर अंबानी-अडानी जैसे पूंजीपतियों को दे देने को विकास कहेंगे, क्या हम पूंजीपतियों को लूट की छूट देने को जनता का विकास मान लेंगे?
अपील पर कवि केडी सिंह की काव्यात्मक प्रतिक्रिया 
बंधुओ, भाजपा केंद्र की यूपीए सरकार की ही आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ा रही है। इन नीतियों के कारण ही बेरोजगारी और महंगाई बढ़ी है, बड़े पैमाने के घोटाले और भ्रष्टाचार हुए हैं। भाजपा के मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक सांप्रदायिक उन्माद भड़काने के साथ-साथ भ्रष्टाचार और घोटालों में भी लिप्त पाए गए हैं। भाजपा की पूंजीवादपरस्त सामंती-सांप्रदायिक फासीवादी राजनीति का एकमात्र जवाब जनता की सच्ची राजनीति ही हो सकती है। उन पार्टियों से कोई उम्मीद करना बेकार है, जिनका  सांप्रदायिक-जातिवादी-क्षेत्रवादी धुव्रीकरण तथा काले धन और अवसरवादी गठबंधनों के जरिए संसद में पहुंचना ही एकमात्र मकसद रह गया है। भाजपा समेत तमाम शासकवर्गीय पार्टियों को लगता है कि पांच साल जनता के सवालों और संघर्षों से कटे रहकर भी चुनाव के वक्त अपने झूठे दावों के घनघोर मीडिया प्रचार, हैलिकाॅप्टर वाली रैलियों और धन के बल पर वे जनता के वोट को हड़प सकती हैं और जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। 
आइए धन और लूट की इस राजनीति की मनमानियों के खिलाफ जन की राजनीति को विजयी बनाएं। भाकपा-माले ऐसी पार्टी है, जो हमेशा जनता के सहयोग से जनता के बुनियादी मुद्दों पर चुनाव लड़ती रही है। माले ने समाज के गरीब-कमजोर वर्ग को वोट का अधिकार दिलाने के लिए भी ऐतिहासिक संघर्ष किया है। ग्रामीण गरीबों और खेत मजदूरों के लिए रोजगार और मजदूरी का सवाल हो या सोन नहर के आधुनिकीकरण, नलकूप, डीजल अनुदान, धान क्रय केंद्र और फसल की उचित कीमत का सवाल या छात्र-नौजवानों की शिक्षा, बेराजगारी आदि के सवाल, माले ही इन सवालों पर लगातार आंदोलन करती रही है। सड़क, सफाई, स्वास्थ्य, आम अवाम की सुरक्षा आदि तमाम मुद्दों पर माले ने संघर्ष चलाया है। बाढ़-सूखा-अकाल जैसी आपदाओं के वक्त भी जनता की मदद में यह पार्टी खड़ी नजर आती है। हाल-फिलहाल में बिजली की दर वृद्धि के खिलाफ इसके राज्यव्यापी आंदोलन के कारण सरकार को प्रस्तावित वृद्धि वापस लेनी पड़ी। बिहार सरकार की शराब नीति ने जिस तरह की असामाजिकता, खासकर महिला विरोधी सामंती संस्कृति का मनोबल बढ़ाया है, उसके खिलाफ भी माले ने शराबबंदी का आंदोलन चलाया। शराबबंदी के सवाल पर और बच्चियों के बलात्कार के खिलाफ आंदोलन करने के कारण माले के रोहतास जिला सचिव भैयाराम यादव को शहादत तक देनी पड़ी। महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और आजादी के लिए लड़ने का इस पार्टी का बेमिसाल रिकार्ड रहा है।
माले ने जद-यू, लोजपा की तरह सांप्रदायिक उन्माद की ताकतों के साथ कभी भी समझौता नहीं किया, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द और सेकुलरिज्म के लिए जमीनी स्तर पर संघर्ष किया है। संप्रदाय और जाति के मुखौटे में रहने वाले बाहुबलियों और अपराधियों के खिलाफ यह पार्टी संघर्ष चलाती रही है, जबकि सत्ताधारी जद-यू हो या भाजपा, राजद, लोजपा सब उनको संरक्षण देते रहे हैं। ऐन चुनाव प्रचार के दौरान माले नेता बुधराम पासवान की रात के अंधेरे में जिस निर्मम तरीके से हत्या की गई, वह एक राजनैतिक साजिश ही लगती है। इस हत्या के बाद माले कार्यकर्ताओं ने जिस अनुशासन और संयम का परिचय दिया, उसकी तुलना आरा में ही नरसंहारों के लिए चर्चित एक आरोपी की हत्या के बाद मचाए गए तोड़फोड़ और आतंक से करें, तो अन्याय और अपराध की संरक्षक राजनीति और जनता की राजनीति का फर्क स्पष्ट हो जाता है। आज भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की बात सब कर रहे हैं, यहां तक कि बिहार सरकार भी, लेकिन शायद यह अलग से बताने की जरूरत नहीं है कि बिहार में भ्रष्टाचार कई गुना बढ़ चुका है, जनता इसे हर रोज झेल रही है। भ्रष्टाचार चाहे नीतियों की वजह से हो या भ्रष्टाचार प्रशासन और राजनीति में हो, माले का ही उससे स्वाभाविक टकराव रहा है। 
भाकपा-माले ने  आरा से युवा नेता राजू यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है। माले उम्मीदवार की छवि एक ईमानदार और समर्पित जनराजनैतिक कार्यकर्ता की है। वे न तो दलबदलू हैं और न ही अचानक राजनीति में आ टपके हैं। आपसे अपील है कि भाकपा-माले को हर स्तर से सहयोग करके आरा से इस देश में एक ताकतवर जनराजनीतिक विकल्प दीजिए। जनता के बुनियादी सवालों पर संघर्ष करने वाली पार्टी भाकपा-माले और उसके युवा उम्मीदवार राजू यादव को वोट देकर संसद में भेजिए, ताकि वे वहां पहुंचकर संसद के भीतर जनपक्षीय नीतियों के निर्माण के लिए संघर्ष करें। इतिहास के हर नाजुक मोड़ पर भोजपुर ने विकल्प दिया है, उस परंपरा को आगे बढ़ाइए। आइए इस देश और लोकतंत्र को बचाने तथा देश की राजनीति को जनपक्षीय दिशा देने के संघर्ष में हम सब भी अपनी निर्णायक भूमिका निभाएं।

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