Wednesday, January 14, 2015

का. सूफियान के आठवें शहादत दिवस पर माले ने संकल्प सभा आयोजित की


फिरकापरस्त-फासीवादी राजनीति को शिकस्त देने का आह्वान
इंसाफ, अमन और सामाजिक-आर्थिक बराबरी के लिए एकताबद्ध संघर्ष का आह्वान


आरा: 13 जनवरी 2015 
स्थानीय अबरपुल मुहल्ले में भाकपा-माले, आरा नगर कमेटी की ओर से शहीद का. सुफियान के आठवें शहादत दिवस पर ‘सकल्प सभा’ का आयोजन किया गया। सभा की अध्यक्षता करते हुए अबरपुल के वरिष्ठ कामरेड क्यामुद्दीन उर्फ साधू जी ने कहा कि हिंदुस्तान में गरीबों की कोई सरकार नहीं है। केंद्र में मोदी की सरकार बनने के बाद पूंजीपतियों और दौलतवालों के अच्छे दिन आए हैं। लालू-नीतीश ने भी गरीबों के लिए कुछ नहीं किया। ये सरकारें ऐसा माहौल बना रही हैं कि गरीब आपस में लड़कर खत्म हो जाएं। गरीबों के हक-अधिकार के लिए संघर्ष के जिस रास्ते पर का. सूफियान चले थे, उन्हीं के रास्ते पर चलकर उनकी समस्याओं का समाधान संभव है। 
इंसाफ मंच के मो. शहाबुद्दीन ने अबरपुल इलाके में जनता के हक-अधिकार के लिए का. सुफियान के संघर्ष को याद करते हुए कहा कि उनकी हत्या करके अपराधियों ने जनता की ताकत और विकास के ख्वाब की हत्या करने की कोशिश की थी। आज इस इलाके की जो दुर्दशा है, वही सुफियान बनने की जरूरत को सामने ला रही है। 
निर्माण मजदूर यूनियन के का. बालमुकुंद चौधरी ने का. सुफियान के काम को आगे बढ़ाने के लिए मेहनतकशों की एकता और हिंदुस्तान पर उसकी दावेदारी को कायम करने की जरूरत पर जोर दिया। का. गोपाल प्रसाद ने याद किया कि का. सुफियान की हत्या के बाद आरा शहर के नागरिक आक्रोश में जिस भारी तादाद में जुटे थे, उस तरह किसी नेता या कार्यकर्ता की हत्या पर नहीं जुटते। यही इस बात का संकेत है कि का. सुफियान जनता की किस जरूरी लड़ाई को लड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि तमाम शासकवर्गीय पार्टियां अपराध के खिलाफ बोलती हैं, पर अपराध बढ़ता ही जा रहा है। विधानसभाओं और संसद में अपराधी भरे पड़े हैं। 
मो. राजन ने कहा कि का. सुफियान एक अपराधमुक्त-शोषणमुक्त समाज के लिए लड़ रहे थे। वे चाहते थे कि विकास योजनाओं की लूट न हो, बल्कि उससे जनता का विकास हो। यही बात अपराधियों और उनके संरक्षक राजनीतिक ठेकेदारों को पसंद नहीं आई। 
एक्टू के नेता का. यदुनंदन चौधरी ने कहा कि आज जब गरीबों, श्रमिकों के अधिकारों को छिनने वाली केंद्र सरकार पूरे हिंदुस्तान में उन्माद पैदा करके ‘साझी विरासत’ की हत्या कर रही है, तब कुंवर सिंह-पीर अली और बिस्मिल-अशफाकउल्ला की साम्राज्यवादविरोधी संघर्ष की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए शहीद होने वाले का. सुफियान के सपनों को साकार करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 
राष्ट्रीय सहारा 
संकल्प सभा को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता समकालीन जनमत के संपादक सुधीर सुमन ने कहा कि का. सूफियान ने जमीनी स्तर पर सांप्रदायिकता और अपराध के खिलाफ जुझारू जंग लड़ी। तीन-तीन बार आरा शहर में दंगे भड़काने की साजिश की गई, लेकिन का. सूफियान ने हर बार हिंदू-मुस्लिम अवाम की एकजुटता को संभव किया और सड़कों पर उतरकर उन साजिशों को नाकाम किया। उनके भीतर गरीब-मेहनतकश जनता का स्वाभिमान था। जनता के ऐसे ही स्वाभिमान के बल पर किसी राष्ट्र की संप्रभुता और स्वतंत्रता कायम रहती है। फिरकापरस्त-फासीवादी राजनीति को मेहनतकश जनता ही शिकस्त दे सकती है।
दैनिक हिंदुस्तान 
दैनिक जागरण जिसमें
साप्रदायिकता विरोध के
सारे संदर्भो को गायब
कर दिया गया.
का. सुधीर सुमन ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार जनता को विकास और अच्छे दिन का झांसा देकर देश के प्राकृतिक संसाधनों, जल-जंगल, किसानों-आदिवासियों की जमीन को देशी-विदेशी पूंजीपतियों को औने-पौने दामों में बेच रही है, आम जनता जिन खुदरा व्यवसायों या छोटे-मोटे धंधों के जरिए अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करती थी, उनको भी बड़ी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है। इसके खिलाफ जनता का गुस्सा संगठित न हो, इसके लिए ही सरकार धर्म-संप्रदाय के नाम पर उन्माद और तनाव फैलाने वालों को खुली छूट दे रही है। आज के माहौल में हमें सैकड़ों सूफियान की जरूरत है, जो लुटेरों-अपराधियों और सांप्रदायिक गिरोहों के चंगुल से अपने देश, शहर और समाज को बाहर निकाल सकें।
                                                                           
संकल्प सभा का संचालन भाकपा-माले आरा नगर सचिव का. दिलराज प्रीतम ने किया। 
   
का. सुफियान के आठवें शहादत दिवस पर आयोजित ‘संकल्प सभा’ में पारित प्रस्ताव

प्रभात खबर की छोटी सी खबर जिसमें
मुख्य वक्ता का वक्तव्य ही गायब है.
1. आरा शहर में सांप्रदायिक सौहार्द, आम नागरिकों की सुरक्षा, दबे-कुचले-दलित-अकलियत अवाम के लोकतांत्रिक हक-अधिकार और विकास के लिए संघर्ष चलाने वाले का. सुफियान के हत्यारों को राजनीतिक संरक्षण देने वाली ताकतों  के खिलाफ संघर्ष का यह संकल्प सभा प्रस्ताव लेती है। यह पूरे नागरिक समाज का भी कर्तव्य बनता है कि वह जनता के हित में हमेशा संघर्ष के लिए तत्पर रहने वाले का. सुफियान के हत्यारों को सजा दिलवाने के लिए प्रशासन और न्याय व्यवस्था पर दबाव बनाए। यह ‘संकल्प सभा’ चाहती है कि हत्यारों को सख्त सजा मिले, ताकि भविष्य में कोई अपराधी गिरोह किसी जनआंदोलनकारी शख्सियत की हत्या करने का दुस्साहस न करें। 
2. धर्मांतरण और लव जेहाद के राजनैतिक दुष्प्रचार तथा आतंकवाद के फर्जी मामलों में अल्पसंख्यक नौजवानों की गिरफ्तारी नकली-दाढ़ी मूंछ लगाकर आतंकी कार्रवाई करके मुसलमानों पर इल्जाम मढ़ने के जिम्मेवार हिंदुत्ववादी संगठनों और पुलिस-खुफिया अधिकारियों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाकर कठोर सजाएं दी जाएं। 
3. गुजरात में आतंकवाद से मुकाबले के लिए किए गए माॅक ड्रील के दौरान आतंकवादी की भूमिका निभाने वालों मुस्लिम वेशभूषा धारण कराने वाले अधिकारियों को बर्खास्त किया जाए और गुजरात सरकार व केंद्र सरकार इस कुकृत्य पर माफी मांगे। 
4. आतंकवाद की किसी भी घटना की निष्पक्षता से जांच की जाए और असली दोषियों को सजा दी जाए। आतंकवाद के आड़ में किसी एक संप्रदाय को बदनाम करने की तमाम राजनीतिक साजिशें बंद की जाएं। गुजरात के अक्षरधाम से लेकर देश के कई हिस्सों में आतंकवाद की घटनाओं में फंसाए गए नौजवानों की दस-दस वर्षों बाद रिहाई हो चुकी है। लिहाजा उन पर आरोप लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। 
5. मीडिया के जरिए मुस्लिम समाज की आतंकवादी की छवि बनाने के सिलसिले को बंद किया जाए। आतंकवाद के मामलों में फर्जी तौर से फंसाए गए नौजवानों के बारे में फर्जी कहानियां गढ़ने वाली मीडिया को भी जवाबदेह बनाया जाए। क्योंकि जिस सामूहिक अंतःकरण का हवाला देकर अफजल को फांसी दी गई, उसके निर्माण में मीडिया की अहम भूमिका होती है। 
6. अमेरिका ने अपने आर्थिक-राजनीतिक हित के लिए दुनिया भर में आतंकवादी संगठनों को जन्म दिया है और उन्हें पाला पोसा है। दूसरे देशों के प्राकृतिक संसाधनों की लूट, लोकतांत्रिक सरकारों को हटाकर अपनी कठपुतली सरकार बनाने और अनेक जनंसहार के लिए जिम्मेवार अमेरिका के राष्ट्रपति को भारत के गणतंत्र दिवस पर अतिथि बनाने की यह संकल्प सभा निंदा करती है और इसे आत्मघाती कृत्य मानती है। राष्ट्र की संप्रभुता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए इसे खतरनाक मानते हुए अमेरिकी साम्राज्यवाद के समक्ष मोदी सरकार के इस आत्मसमर्पण का पुरजोर शब्दों विरोध करती है। 
9. यह ‘संकल्प सभा’ रामप्रसाद विस्मिल और अशफाकउल्ला की साझी शहादत और साझी विरासत तथा शहीदे-आजम भगतसिंह के तमाम साथियों की इंकलाबी विरासत को याद करते हुए देश की संपदा को देशी-विदेशी कंपनियों के हाथों बेचने वाली तमाम राजनैतिक ताकतों के खिलाफ एकताबद्ध संघर्ष का प्रस्ताव लेती है।
10. यह संकल्प सभा सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के लिए संघर्ष का प्रस्ताव लेती है। 
11. खुदरा व्यवसाय में एफडीआई, भूमि अधिग्रहण व श्रम कानूनों में संशोधनों का यह ‘संकल्प सभा’ तीव्र विरोध करती है और बेरोजगारी, महंगाई तथा आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत तमाम बुनियादी सेवाओं की बदतर स्थिति के खिलाफ व्यापक जनांदोलन छेड़ने का प्रस्ताव लेती है। 
12. दलित-अल्पसंख्यक-पिछड़े समुदायों के गरीबों और खेत मजदूरांे की हत्या के लिए जिम्मेवार रणवीर सेना के राजनीतिक संरक्षकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए यह ‘संकल्प सभा’ अमीरदास आयोग की पुनर्बहाली की मांग करती है। 
13. सीलिंग से फाजिल और गैरमजरुआ तथा पर्चे की जमीन पर गरीब भूमिहीनों के हक-अधिकार के लिए 20 जनवरी को आरा में होने वाले प्रर्दशन में व्यापक जनभागीदारी की अपील यह ‘संकल्प सभा’ करती है। 
14. देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाली पार्टियों के खिलाफ जमीनी स्तर पर सांप्रदायिक सौहार्द और कौमी एकजुटता को कायम करने वाली जनराजनैतिक गोलबंदी को तेज करने की अपील यह ‘संकल्प सभा’ करती है। 

Sunday, January 11, 2015

का. सुफियान के आठवें शहादत दिवस पर 'संकल्प सभा' का पर्चा


फिरकापरस्त-फासीवादी राजनीति को शिकस्त दो
बेहतर व्यवस्था के लिए संघर्षशील अवाम की एकता कायम करो
इंसाफ, अमन और सामाजिक-आर्थिक बराबरी की जंग तेज करो

का. सुफियान के आठवें शहादत दिवस पर
संकल्प सभा

13 जनवरी 2015, समय- 12 बजे दिन, स्थान- अबरपुल, आरा


नागरिक बंधुओ,

आज से सात वर्ष पहले अपराधियों ने का. सुफियान की हत्या कर दी थी। अपराधियों और हत्यारों को उन शासकवर्गीय राजनीतिक पार्टियों का संरक्षण मिलता रहा, जो सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई का सिर्फ पाखंड करती हैं,, लेकिन जिन्होंने अपनी जनविरोधी कारगुजारियों के कारण आरा और बिहार ही नहीं, पूरे देश में फिरकापरस्त-फासीवादी राजनीति के लिए आगे बढ़ने की जमीन तैयार की। इसके विपरीत का. सुफियान जमीनी स्तर पर सांप्रदायिकता और अपराध के खिलाफ जुझारू जंग लड़ते रहे। वे ऐसे इंसान थे, जिन्हें हिंदू-मुस्लिम भाईचारा और आम नागरिकों की सुरक्षा की फिक्र थी। तीन-तीन बार आरा शहर में दंगे भड़काने की साजिश की गई, लेकिन का. सुफियान ने हर बार हिंदू-मुस्लिम अवाम की एकजुटता को संभव किया और सड़कों पर उतरकर उन साजिशों को नाकाम किया। 

देश की आजादी की लड़ाई के दौरान हिंदू-मुस्लिम अवाम ने एक होकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद और उनकी दमनकारी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया था, अपने समय में का. सुफियान उसी परंपरा को जीवित रखने वाली इंकलाबी धारा के नुमाइंदे थे। यह बेवजह नहीं था कि रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्ला की ‘साझी शहादत साझी विरासत’ की चेतना से लोगों को उन्होंने लैस करने की कोशिश की। जिन्होंने इस देश में कभी बुश को बुलाया था और जो अब गणतंत्र दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के स्वागत की तैयारियां कर रहे हैं, का. सुफियान उन जैसों के विरोधी थे। उनके भीतर गरीब-मेहनतकश जनता का स्वाभिमान था। जनता के ऐसे ही स्वाभिमान के बल पर किसी राष्ट्र की संप्रभुता और स्वतंत्रता कायम रहती है। का. सुफियान शहीद-ए-आजम भगतसिंह के अनुयायी थे, जिन्होंने जनता की वर्गीय एकजुटता को सांप्रदायिकता और साम्राज्यवादविरोध के लिए जरूरी बताया था। 

का. सुफियान हमेशा आरा में दबे-कुचले-पिछड़े-दलित समुदायों और अकलियतों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए चल रहे आंदोलनों में शामिल रहे। विडंबना यह है कि अकलियतों की खराब जीवन दशा के बारे में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद भी उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के बजाए उनके खिलाफ नफरत की सियासत को तरह-तरह की साजिशों, अफवाहों के जरिए लगातार हवा दी जाती रही है। अमेरिकन साम्राज्यवाद की रणनीति की तर्ज पर अपने देश में भी मुसलमानों की पहचान आतंकवादी के बतौर कायम करने की हरसंभव कोशिश की गई है। बेगुनाह नौजवानों को आतंकवाद के फर्जी मुकदमों में कई-कई वर्षों तक जेल में बंद रखा जाता है, कोर्ट के कैंपस में उनकी हत्याएं की जाती हैं, आरएसएस से जुड़े सांप्रदायिक लोगों द्वारा नकली दाढ़ी-मूंछ लगाकर आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है। अभी हाल में गुजरात में आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर जो माॅक ड्रील की गई, उसमें आतंकवादियों की भूमिका करने वालों को मुस्लिम वेशभूषा धारण करवाया गया था। मुसलमानों को बदनाम करने की ऐसी तमाम साजिशों का एक मुकम्मल जवाब हैं का. सुफियान। गरीब-मेहनतकश आम अवाम की इंकलाबी ताकत की पहचान हैं का. सुफियान।

बहुत ही कम उम्र में दर्जी यूनियन के जरिए का. सुफियान ने गरीब-मेहनतकशों के हक-अधिकार की लड़ाई की शुरुआत की थी। जीवनयापन के लिए कई छोटे-मोटे काम करते हुए उन्होंने ताउम्र भाकपा-माले के परचम को थामे रखा। हिंदू राष्ट्र का सपना दिखाकर पूंजीपतियों और कालेधंधे वालों का हित साधने वाले हों या सामाजिक न्याय, सेकुलरिज्म और सुशासन का पाखंड करने वाले, का. सुफियान  ने इन सबका विरोध किया। उन्होंने जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की साठगांठ से होने वाली लूट का विरोध किया और जब वार्ड के चुनाव में वे जनप्रतिनिधि के रूप में चुने गए, तो यह दिखाया कि ईमानदारी से किस तरह विकास किया जाता है। 

नागरिक बंधुओ, देश एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है, केंद्र की मोदी सरकार जनता को विकास और अच्छे दिन का झांसा देकर देश के प्राकृतिक संसाधनों, जल-जंगल, किसानों-आदिवासियों की जमीन को देशी-विदेशी पूंजीपतियों को औने-पौने दामों में बेच रही है, आम जनता जिन खुदरा व्यवसायों या छोटे-मोटे धंधों के जरिए अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करती थी, उनको भी बड़ी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है। इसके खिलाफ जनता में बढ़ रहा गुस्सा जबर्दस्त तूफान का रूप न ले ले, इसी मकसद से सरकार ने धर्म-संप्रदाय के नाम पर उन्माद और तनाव फैलाने वालों को खुली छूट दे दी है। बंधुओ, आज हमें सैकड़ो सुफियान की जरूरत है, जो लुटेरों-अपराधियों के चंगुल से अपने देश, शहर और समाज को बाहर निकाल सकें। आइए का. सुफियान के शहादत दिवस पर हम इस जंग को तेज करने और आम अवाम की बहुत बड़ी एकता कायम करने का संकल्प लें। 

निवेदक : भाकपा-माले, आरा नगर कमेटी

एक अद्भुत जुझारूपना सुफियान की पहचान हुआ करती थी : चंद्रभूषण

13 जनवरी 2008 को का. सुफियान की शहादत के बाद पत्रकार साथी चंद्रभूषण ने अपने ब्लॉग पहलू पर एक पोस्ट लिखा था. उसके बाद उनके एक दूसरे पोस्ट में भी का. सुफियान का जिक्र आया था. कल उनका आठवां शहादत दिवस है. इस मौके पर चंद्रभूषण की यादों को हम यहाँ साझा कर रहे हैं. चंद्रभूषण ने आरा में भाकपा-माले के पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता के बतौर काम किया. समकालीन जनमत के संपादक मंडल में रहे.  फ़िलहाल डेढ़ दशक से हिंदी पत्रकारिकता के वे एक सुपरिचित नाम हैं. जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा के बाद आजकल वे नवभारत टाइम्स में कार्यरत हैं.

...एक अनजाने से नंबर से एसएमएस आया- 'अबरपुल के कॉमरेड सुफियान नहीं रहे। अपराधियों ने गोली मार दी।' पलटकर फोन किया तो लगातार इंगेज। ऐन स्कूटर स्टार्ट करते वक्त फोन बजा। उठाया तो पता चला सुनील (सुनील सरीन) हैं- नंबर कुछ और हो गया है। फिर उन्होंने विस्तार से बताया कि सुफियान अपनी दुकान के सामने कैरम खेल रहे थे, तभी नौशाद गैंग के लोगों ने आकर उन पर गोलियों की बारिश कर दी। स्पॉट डेथ हुई।...


मोहम्मद सुफियान भोजपुर जिले के मुख्यालय आरा में लगभग अपने बचपन से ही सीपीआई-एमएल लिबरेशन के कार्यकर्ता थे। मेरे निजी मित्र तो वे थे ही। आरा में जब पार्टी का काम शुरू हुआ तो दर्जी यूनियन और बक्सा मजदूर यूनियन ही इसका आधार बनी। संयोगवश इन दोनों ही यूनियनों में बहुसंख्या मुस्लिम मजदूरों की थी। सुफियान के पिता खुद भी दर्जी थे, हालांकि उनके पास अपनी दुकान नहीं थे। वे और शहर में काम करने वाले ढेरों अन्य अनपढ़ बाल मजदूरों की तरह उनके अकेले बेटे सुफियान थोक में कपड़ा सिलने वाली एक दुकान पर काम करते थे। आंदोलन बढ़ा तो मजदूरों की कुछ मांगें मानी गईं, लेकिन इसका नेतृत्व कर रहे सारे लोगों को काम से हटा दिया गया।

तब से जीविका के लिए न जाने कितने छोटे-मोटे धंधे सुफियान ने किए। उनका आखिरी काम एक सैलून खोलने का था, जिसका फीता न जाने क्या सोचकर उन्होंने मुझसे ही कटाया था। उनके सैलून में बाल कटाने वाला पहला व्यक्ति भी मैं ही था।(सैलून के बाद सुफियान ने छोटी सी एक बिस्कुट फैक्ट्री खोली थी.) 
सुनील ने बताया कि इस बार आरा में हुए नगर निगम चुनाव में सुफियान अबरपुल इलाके के वार्ड कमिश्नर चुने गए थे। शायद यह उनका पहला ही चुनाव रहा हो, क्योंकि जबतक मैं आरा में था, तब तक तो यह कल्पना भी करना कठिन था कि सुफियान कभी चुनाव लड़ेंगे। 

एक अद्भुत जुझारूपना सुफियान की पहचान हुआ करती थी। वे साथ हों तो किसी से भी भिड़ा जा सकता था- चाहे वह कोई उन्मादी भीड़ हो या अपनी अफसरी के गुमान में फूला कोई पुलिस अफसर। आरा के झोपड़िया स्कूल के सामने गद्दार विधायक श्रीभगवान सिंह का विरोध करते हुए अपने बीस साथियों के साथ मैं और सुफियान भी साथ-साथ जेल गए थे। वहां किसी बात पर झड़प के दौरान जेलर ने सुफियान को घुटना मार दिया था। इसके विरोध में और व्यवस्था से जुड़े कई मुद्दे उठाते हुए हम लोगों ने जेल में भूख हड़ताल की, जिसमें जेल के तीन चौथाई से ज्यादा लोग शरीक हुए।

एक बार चुनावी माहौल में अपनी पार्टी का टेंपो डाउन देख मैं दोनों हाथों में अपना सिर थामे बैठा था, तभी सुफियान आए और मुझपर बिल्कुल बरस पड़े। उन्होंने कहा कि ऐसा करके आप बिगड़ी हालत को और बिगाड़ रहे हैं। मुझे नहीं पता कि हर हालत में भिड़ने, मुकाबला करने की उनकी उस जिद और मस्ती का हाल अभी कैसा था। आखिर अब वे कोई बाल मजदूर नहीं, एक सैलून के मालिक और वार्ड कमिश्नर थे। लेकिन ऐन लोहड़ी की ठंडी रात सुफियान अपनी दुकान के बाहर कैरम खेलते हुए मारे गए, इससे लगता यही है कि बीच के चौदह सालों ने उन्हें भीतर से बहुत ज्यादा नहीं बदला था।

सुफियान को इस तरह याद करना मेरे लिए बहुत अटपटा है। समय की एक चौदह साल मोटी धुंधली दीवार मुझे अपने उस होने से अलगाए हुए है, जिसमें सुफियान और बहुत सारे ऐसे लोग थे, जिनके बिना अपना होना तब नामुमकिन लगता था। यह ध्रुवीय इलाकों में सफर कर रहे अभियान दल के लोगों के बरताव जैसा है, जो अपने पैरों की मर चुकी उंगलियां हथौड़े से तोड़कर आगे बढ़ जाते थे। सुफियान जैसा अपना टूटा हुआ सुन्न अंगूठा हजार मील दूर से निहारते हुए कहीं पहुंचनेकोई मुकाम सर करने जैसी कोई बात अगर अपने जेहन में होती तो लिखना शायद इतना अटपटा नहीं लगता।

...जो लोग इस गलतफहमी में रहते हैं कि मुसलमानों में धर्म ही सबकुछ है, जाति कुछ नहीं है, उनके लिए एक सूचना कि मेरी जानकारी में सिर्फ अबरपुल मोहल्ले में मुसलमानों की कुल 32 जातियां मौजूद थीं। बीड़ी बनाने वाले अपने एक साथी नन्हक जी की बेटी से हम लोगों ने सुफियान की शादी कराने की कोशिश की थी तो इलाके की दर्जी बिरादरी से आक्रोश के स्वर उभरने लगे- अब दर्जियों के दिन इतने खराब हो गए कि साईं-फकीर की लड़की ब्याह के घर में लाएंगे। इसके कुछ महीने बाद अबरपुल की मस्जिद में सुफियान का निकाह पढ़ाया गया- दोनों तरफ से कबूल है, कबूल है के जैसा कोई फिल्मी मामला नहीं था। दुल्हन घर में ही रही और उसकी तरफ से उसका इकरारनामा उसके बाप ने दिया। इसके अगले साल सुफियान कुछ दिनों तक मेरे साथ जेल में रहे। उनके साथ मेरा अंतिम और परोक्ष संवाद 1995 का है, जब जनमत में लिखे एक जेल संस्मरण पर उन्होंने चिट्ठी भेजकर अपना तीखा एतराज जताया था। मैंने लिखा था कि जेलर ने एक आंदोलन के दौरान सुफियान को घुटना मार दिया था, जिसे पढ़कर इलाके में शायद उनका कुछ मजाक बन गया था। उनका कहना था कि कोई घुटना-वुटना नहीं मारा था, मैंने खामखा अपनी बहादुरी जताने के लिए यह सब लिखा है।...


वे पार्टी के औपचारिक सदस्य न थे, पर हमारे कामरेड थे



जनार्दन प्रसाद जी की स्मृति में शोक सभा 



10 जनवरी 2015 को आरा में जनार्दन प्रसाद जी की स्मृति में भाकपा-माले की ओर से शोक सभा की गई। उनकी स्मृति में एक मिनट का मौन रखकर शोकसभा की शुरुआत की गई। डाॅ. बिजेंद्र बायोलाॅजी क्लासेज, नवादा, आरा में आयोजित इस शोक सभा का संचालन करते हुए का. कृष्णरंजन गुप्ता ने कहा कि जब भाकपा-माले भूमिगत थी, तब जनार्दन चाचा, सत्यप्रकाश चाचा और देवानंद चाचा ने अभिभावक की तरह हम सबको आगे बढ़ाया। जब पुलिस कार्यकर्ताओं को खोजती चलती थी, उस दौर में जर्नादन प्रसाद ने अपने लड़कों को आंदोलन और संघर्ष के रास्ते की ओर जाने दिया। 

सत्यप्रकाश जी का कई वर्ष पहले निधन हुआ। इस 8 जनवरी को जनार्दन प्रसाद भी नहीं रहे। उन्हें याद करते हुए का. देवानंद प्रसाद ने बताया कि अभी एक माह पहले जब वे आरा आये थे तो पार्टी ऑफिस में उनसे मुलाकात हुई थी। उन्होंने बताया कि उनके साथ उनका गहरा वैचारिक सामंजस्य था। हर सुख-दुख में वे एक साथ रहे। देवघर के अनुकूलचंद्र महाराज से जर्नादन जी का जुड़़ाव था। फिर हम लोग गायित्री परिवार से जुड़े। लेकिन पार्टी से जुड़ने के बाद वह सब छूट गया। वह दौर अभाव और गरीबी का था। पुलिस ने पूरे मुहल्ले को नक्सलियों के मुहल्ले के तौर पर चिह्नित कर रखा था। उन्होंने उनके पुत्र श्रीकांत और अजय के युवानीति के नाटकों में सक्रियता को भी याद किया। 

दैनिक प्रभात खबर 
शोकसभा को संबोधित करते हुए भाकपा-माले के राज्य स्थाई समिति के सदस्य संतोष सहर ने कहा कि जनार्दन चाचा पार्टी के औपचारिक सदस्य नहीं थे, पर आज श्रद्धांजलि हम कामरेड जनार्दन प्रसाद को दे रहे हैं। दरअसल हमारी पार्टी नेताओं की नहीं, नेताओं के पीछे जो लोग, जो जनता है, उनकी पार्टी है, उसी ने पार्टी को बनाया है। बहुत दिनों से वे पटना में श्रीकांत जी के पास रह रहे रहे थे. अभी कलकत्ता में अपने बेटे विनय के पास थे, जहाँ उनका निधन हुआ. अखबारों में छपा कि पत्रकार श्रीकांत और अजय कुमार के पिता जी नहीं रहे। मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी तक ने शोक संदेश दिया। लेकिन जर्नादन चाचा का महत्व कई मायने में श्रीकांत और अजय जी से भी अधिक है। वे कभी अर्जक संघ, अनुकूलचंद्र और गायित्री परिवार से भले ही जुड़े हुए थे, लेकिन उनके सामने जो नए मनुष्य पैदा हो रहे थे, उन्हें वे समझ रहे थे। उनके बेटे पार्टी सदस्य बने। उनका घर हमारे पूर्व राष्ट्रीय महासचिव का. विनोद मिश्र, उस समय के जिला सचिव का. दीना, मेरा और अन्य नेताओं का शेल्टर रहा। 1989 में जब पहली बार एम.पी. के चुनाव में रामेश्वर प्रसाद जीते थे और का. विनोद मिश्र वहां आए थे, तो उस घर में जश्न का माहौल था। 
का. संतोष सहर ने याद किया कि नवादा मुहल्ले के ज्यादातर लोग ऐसे थे, जिन्होंने किसी न किसी रूप में सामाजिक उत्पीड़न का सामना किया था। उसी उत्पीड़न के खिलाफ जगदीश मास्टर, रामनरेश राम और उनके साथियों ने संघर्ष किया था। इस नाते भी उनसे इस मुहल्ले के निवासियों का जुड़ाव स्वाभाविक था। उन्होंने कहा कि रामनरेश राम जब वर्षों बाद चुनाव के जरिए विधानसभा पहुंचे तो वे जनता की ताकत के बतौर ही वहां पहुंचे। मांझी की तरह समझौते उन्होंने नहीं किए। जनता की यह ताकत जरूरी है। आज जबकि सबसे बड़ी खरीद-फरोख्त वाली पार्टी भाजपा की चुनौती हमारे सामने है, तब जनता की उस ताकत को जोड़े रखना ही जर्नादन चाचा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ऐसे लोगों को याद करना हमारे लिए कोई रिचुअल नहीं है। पार्टी ऐसे लोगों को कभी नहीं भूलती है। 

मैंने भी याद किया कि जब जसम की जिम्मेवारी मुझे दी गई थी, तब पहली रचना गोष्ठी हमने उन्हीं के घर की छत पर की थी। बाद में एकाध बार वहां हमने प्रेस कांफ्रेस भी की। देवानंद जी के ही दूकान में शाम में उनसे अक्सर मुलाकात होती थी। उन्हें कभी किसी बात को लेकर उत्तेजित होते मैंने नहीं देखा। जब भी वहां किसी घटना या विचार को लेकर तीखी बहस हो जाती, तो उनकी प्रतिक्रिया काफी संतुलित होती थी। राजनीति के मोर्चे पर काम करने वाले हों या संस्कृति के मोर्चे पर, वे हम सबके अभिभावक की तरह थे। 

दैनिक हिदुस्तान 
कवि जितेंद्र कुमार ने कहा कि पत्रकार श्रीकांत और अजय कुमार से परिचय के बाद अक्सर वे सोचते थे कि उन्हें जरूर कोई आधार मिला होगा, जिसके बल पर वे यहां तक पहुंचे। आज उनके पिता के बारे में सुनते हुए उस आधार के बारे में पता चला। उनके पिता भले ही पार्टी के औपचारिक सदस्य नहीं थे, पर पार्टी के प्रचार-प्रसार में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। उन्होंने अपने तईं इस समाज को अच्छा बनाने का प्रयत्न किया। जितेंद्र कुमार ने कहा कि आज भाजपा जिस तरह पूंजीपतियों का हित साधने में लगी है उससे गरीबी मिटने वाली नहीं है। इनकी आर्थिक नीतियों का मुकाबला करना ही होगा। जिस लड़ाई के साथ जनार्दन जी थे, उस लड़ाई के साथ और भी बड़े दायरे की जनता का जुड़ना जरूरी है। शोकसभा में माले नगर सचिव का. दिलराज प्रीतम, वार्ड पार्षद का. गोपाल प्रसाद, का. बालमुकुंद चौधरी, का. राजनाथ राम, एक्टू के का. यदुनंदन चौधरी, का. सुरेश पासवान, का. सत्यदेव, का. दीनानाथ सिंह, का. प्रमोद रजक, का. टुनटुन, अरुण प्रसाद, प्रशांत समेत कई लोग मौजूद थे।