Sunday, January 11, 2015

वे पार्टी के औपचारिक सदस्य न थे, पर हमारे कामरेड थे



जनार्दन प्रसाद जी की स्मृति में शोक सभा 



10 जनवरी 2015 को आरा में जनार्दन प्रसाद जी की स्मृति में भाकपा-माले की ओर से शोक सभा की गई। उनकी स्मृति में एक मिनट का मौन रखकर शोकसभा की शुरुआत की गई। डाॅ. बिजेंद्र बायोलाॅजी क्लासेज, नवादा, आरा में आयोजित इस शोक सभा का संचालन करते हुए का. कृष्णरंजन गुप्ता ने कहा कि जब भाकपा-माले भूमिगत थी, तब जनार्दन चाचा, सत्यप्रकाश चाचा और देवानंद चाचा ने अभिभावक की तरह हम सबको आगे बढ़ाया। जब पुलिस कार्यकर्ताओं को खोजती चलती थी, उस दौर में जर्नादन प्रसाद ने अपने लड़कों को आंदोलन और संघर्ष के रास्ते की ओर जाने दिया। 

सत्यप्रकाश जी का कई वर्ष पहले निधन हुआ। इस 8 जनवरी को जनार्दन प्रसाद भी नहीं रहे। उन्हें याद करते हुए का. देवानंद प्रसाद ने बताया कि अभी एक माह पहले जब वे आरा आये थे तो पार्टी ऑफिस में उनसे मुलाकात हुई थी। उन्होंने बताया कि उनके साथ उनका गहरा वैचारिक सामंजस्य था। हर सुख-दुख में वे एक साथ रहे। देवघर के अनुकूलचंद्र महाराज से जर्नादन जी का जुड़़ाव था। फिर हम लोग गायित्री परिवार से जुड़े। लेकिन पार्टी से जुड़ने के बाद वह सब छूट गया। वह दौर अभाव और गरीबी का था। पुलिस ने पूरे मुहल्ले को नक्सलियों के मुहल्ले के तौर पर चिह्नित कर रखा था। उन्होंने उनके पुत्र श्रीकांत और अजय के युवानीति के नाटकों में सक्रियता को भी याद किया। 

दैनिक प्रभात खबर 
शोकसभा को संबोधित करते हुए भाकपा-माले के राज्य स्थाई समिति के सदस्य संतोष सहर ने कहा कि जनार्दन चाचा पार्टी के औपचारिक सदस्य नहीं थे, पर आज श्रद्धांजलि हम कामरेड जनार्दन प्रसाद को दे रहे हैं। दरअसल हमारी पार्टी नेताओं की नहीं, नेताओं के पीछे जो लोग, जो जनता है, उनकी पार्टी है, उसी ने पार्टी को बनाया है। बहुत दिनों से वे पटना में श्रीकांत जी के पास रह रहे रहे थे. अभी कलकत्ता में अपने बेटे विनय के पास थे, जहाँ उनका निधन हुआ. अखबारों में छपा कि पत्रकार श्रीकांत और अजय कुमार के पिता जी नहीं रहे। मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी तक ने शोक संदेश दिया। लेकिन जर्नादन चाचा का महत्व कई मायने में श्रीकांत और अजय जी से भी अधिक है। वे कभी अर्जक संघ, अनुकूलचंद्र और गायित्री परिवार से भले ही जुड़े हुए थे, लेकिन उनके सामने जो नए मनुष्य पैदा हो रहे थे, उन्हें वे समझ रहे थे। उनके बेटे पार्टी सदस्य बने। उनका घर हमारे पूर्व राष्ट्रीय महासचिव का. विनोद मिश्र, उस समय के जिला सचिव का. दीना, मेरा और अन्य नेताओं का शेल्टर रहा। 1989 में जब पहली बार एम.पी. के चुनाव में रामेश्वर प्रसाद जीते थे और का. विनोद मिश्र वहां आए थे, तो उस घर में जश्न का माहौल था। 
का. संतोष सहर ने याद किया कि नवादा मुहल्ले के ज्यादातर लोग ऐसे थे, जिन्होंने किसी न किसी रूप में सामाजिक उत्पीड़न का सामना किया था। उसी उत्पीड़न के खिलाफ जगदीश मास्टर, रामनरेश राम और उनके साथियों ने संघर्ष किया था। इस नाते भी उनसे इस मुहल्ले के निवासियों का जुड़ाव स्वाभाविक था। उन्होंने कहा कि रामनरेश राम जब वर्षों बाद चुनाव के जरिए विधानसभा पहुंचे तो वे जनता की ताकत के बतौर ही वहां पहुंचे। मांझी की तरह समझौते उन्होंने नहीं किए। जनता की यह ताकत जरूरी है। आज जबकि सबसे बड़ी खरीद-फरोख्त वाली पार्टी भाजपा की चुनौती हमारे सामने है, तब जनता की उस ताकत को जोड़े रखना ही जर्नादन चाचा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ऐसे लोगों को याद करना हमारे लिए कोई रिचुअल नहीं है। पार्टी ऐसे लोगों को कभी नहीं भूलती है। 

मैंने भी याद किया कि जब जसम की जिम्मेवारी मुझे दी गई थी, तब पहली रचना गोष्ठी हमने उन्हीं के घर की छत पर की थी। बाद में एकाध बार वहां हमने प्रेस कांफ्रेस भी की। देवानंद जी के ही दूकान में शाम में उनसे अक्सर मुलाकात होती थी। उन्हें कभी किसी बात को लेकर उत्तेजित होते मैंने नहीं देखा। जब भी वहां किसी घटना या विचार को लेकर तीखी बहस हो जाती, तो उनकी प्रतिक्रिया काफी संतुलित होती थी। राजनीति के मोर्चे पर काम करने वाले हों या संस्कृति के मोर्चे पर, वे हम सबके अभिभावक की तरह थे। 

दैनिक हिदुस्तान 
कवि जितेंद्र कुमार ने कहा कि पत्रकार श्रीकांत और अजय कुमार से परिचय के बाद अक्सर वे सोचते थे कि उन्हें जरूर कोई आधार मिला होगा, जिसके बल पर वे यहां तक पहुंचे। आज उनके पिता के बारे में सुनते हुए उस आधार के बारे में पता चला। उनके पिता भले ही पार्टी के औपचारिक सदस्य नहीं थे, पर पार्टी के प्रचार-प्रसार में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। उन्होंने अपने तईं इस समाज को अच्छा बनाने का प्रयत्न किया। जितेंद्र कुमार ने कहा कि आज भाजपा जिस तरह पूंजीपतियों का हित साधने में लगी है उससे गरीबी मिटने वाली नहीं है। इनकी आर्थिक नीतियों का मुकाबला करना ही होगा। जिस लड़ाई के साथ जनार्दन जी थे, उस लड़ाई के साथ और भी बड़े दायरे की जनता का जुड़ना जरूरी है। शोकसभा में माले नगर सचिव का. दिलराज प्रीतम, वार्ड पार्षद का. गोपाल प्रसाद, का. बालमुकुंद चौधरी, का. राजनाथ राम, एक्टू के का. यदुनंदन चौधरी, का. सुरेश पासवान, का. सत्यदेव, का. दीनानाथ सिंह, का. प्रमोद रजक, का. टुनटुन, अरुण प्रसाद, प्रशांत समेत कई लोग मौजूद थे। 

1 comment:

  1. A great Comrade is now no more. My homage to Comrade Janardan Chacha

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