Friday, December 19, 2014

भोजपुर में का. विनोद मिश्र स्मृति दिवस


भाकपा-माले का. विनोद मिश्र के सपनों के भारत के निर्माण हेतु संकल्पबद्ध है : का. जवाहरलाल सिंह
सांप्रदायिक फासीवादियों की झूठ, लूट और उन्माद की राजनीति के खिलाफ माले का संघर्ष जारी रहेगा 

भाकपा-माले की ओर से पूरे देश में पूर्व राष्ट्रीय महासचिव का. विनोद मिश्र के स्मृति दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाया जाता है। 18 दिसंबर को उनके 16वें स्मृति दिवस पर मैं आरा में था। यहां आरा स्थित जिला कार्यालय समेत भोजपुर जिले के विभिन्न प्रखंडों के लगभग 200 ब्रांच कमिटियों में भाकपा-माले के नेताओं, कार्यकर्ताओं और सदस्यों ने आज की राजनीतिक परिस्थितियों में उनकी क्रांतिकारी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। आरा की संकल्प सभा में पार्टी पोलित ब्यूरो सदस्य का. स्वदेश भट्टाचार्य, केंद्रीय कमेटी सदस्य का. नंदकिशोर प्रसाद, जिला सचिव का. जवाहरलाल सिंह, जसम के राष्ट्रीय सहसचिव जितेंद्र कुमार, आइसा के राज्य सचिव अजीत कुशवाहा, जिला अध्यक्ष शिवप्रकाश रंजन, का. मीरा जी, ऐपवा नेता शोभा मंडल और विंदु सिन्हा, जिला स्थाई समिति सदस्य का. जितेद्र सिंह, श्रमिक संगठन एक्टू के यदुनंदन चौधरी, इंकलाबी नौजवान सभा के सत्यदेव, निर्माण मजदूर यूनियन के बालमुकुंद चैधरी, पार्टी कार्यालय सचिव अशोक कुमार सिंह, आॅल इंडिया प्रोग्रेसिव एडवोकेट एसोसिएशन के अमित कुमार बंटी, माले नगर कमिटी सदस्य सुरेश पासवान, लक्ष्मी पासवान, दीनानाथ सिंह, राजेंद्र यादव, राजनाथ राम समेत कई महत्वपूर्ण पार्टी कार्यकर्ता और सदस्य मौजूद थे। इस मौके पर का. विनोद मिश्र समेत पार्टी के तमाम शहीद साथियों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। संकल्प सभा का संचालन का. दिलराज प्रीतम ने किया। इस मौके पर वार्ड पार्षद गोपाल प्रसाद ने झंडात्तोलन किया।
संकल्प सभा को संबोधित करते हुए पार्टी के जिला सचिव का. जवाहरलाल सिंह ने कहा कि महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और एफडीआई को खत्म करने और काला धन वापस लाने से भाजपा सरकार मुकर चुकी है। जनता के गुस्से से बचने के लिए उसमें फूट डालने के लिए वह देश में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने में लगी हुई है। वह देश की साझी संस्कृति और लोकतांत्रिक मूल्यों को तहस-नहस कर रही है। उसका ‘मेक इन इंडिया’ दरअसल इस देश की जनता के श्रम और प्राकृतिक संसाधनों को सस्ते भाव में देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हाथ बेच देने की योजना है। आज केंद्र की कारपोरेटपरस्त सांप्रदायिक फासीवादी सरकार के खिलाफ देश के आदिवासी, अल्पसंख्यक, किसान, श्रमिक, छात्र-नौजवान सबका असंतोष बढ़ने लगा है। बेशक पूंजीवादी मीडिया अभी भी जनता की उम्मीदों से गद्दारी करने वाली और सांप्रदायिक उन्माद व आतंक को शह देने वाली मोदी के प्रचार में लगी हुई है, लेकिन इससे जनता का विक्षोभ बहुत देर तक नहीं शांत होगा। भाकपा-माले ने का. विनोद मिश्र के स्मृति दिवस पर जनता के तमाम लोकतांत्रिक सवालों पर बढ़-चढ़कर संघर्ष करने तथा अपने सांगठनिक तंत्र को और भी व्यापक और मजबूत बनाते हुए सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों की झूठ, लूट और उन्माद की राजनीति के खिलाफ लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया है। 

इसके पहले उन्होंने का. विनोद मिश्र की ऐतिहासिक भूमिका को याद करते हुए कहा कि जब शासकवर्ग ने भीषण दमन के जरिए नक्सलबाड़ी आंदोलन को कुचल डाला था, जब पार्टी कई गुटों में बंट चुकी थी, तब विनोद मिश्र ने इंजीनियरिंग की अपनी कैरियर को छोड़कर भारतीय क्रांति की सुसंगत दिशा में जनता को संगठित करने की जिम्मेवारी स्वीकार की। पहले और दूसरे महासचिव का. चारु मजुमदार और का. जौहर तथा भोजपुर आंदोलन के संस्थापक का. जगदीश मास्टर की शहादत के बाद उन्होंने एक तरह से पार्टी को फिर से संगठित किया। उन्होंने अपने विचार और व्यवहार से हमें यह सिखाया कि एक सच्चा क्रांतिकारी जटिल से जटिल, कठिन से कठिन परिस्थितियों और दमन के अंधेरे दौर में भी रौशनी की उम्मीद नहीं छोड़ता। बगैर निराश और हताश हुए उन्होंने तमाम संभावनाओं की तलाश की और भाकपा-माले को पूरे देश में क्रांतिकारी वामपंथी पार्टी के तौर पर स्थापित कर दिया। उन्होंने जिस भारत का सपना देखा उस भारत को बनाने की लड़ाई लड़ने के लिए माले का हर सदस्य संकल्पबद्ध है। 

पेशावर में बच्चों की हत्या और भारत पाकिस्तान दोनों देशों में साम्राज्यवाद, सांप्रदायिकता और आतंकवाद की राजनीति के बारे में सोचते हुए मुझे का. विनोद मिश्र के लेख ‘मेरे सपनों का भारत’ की पंक्तियां नए सिरे से याद आईं। का. वीएम ने लिखा है- मेरे सपनों का भारत निस्संदेह एक अखंड भारत है जहां एक पाकिस्तानी मुसलमान को विवर्तन की जड़े तलाशने के लिए किसी ‘विसा’ की आवश्यकता नहीं होगी, जहां, इसी तरह, किसी भारतीय के लिए महान सिंधुघाटी सभ्यता विदेश में स्थित नहीं होगी, और जहां बंगाली हिंदू शरणार्थी अंततः ढाका की कड़वी स्मृतियों के आंसू पोंछ लेंगे और बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत में विदेशी कहकर चूहों की तरह नहीं खदेड़ा जाएगा। क्या मेरी आवाज भाजपा से मिलती-जुलती लगी है? लेकिन भाजपा तो भारत के मुस्लिम पाकिस्तान और हिंदू भारत- अलबत्ता उतना ‘विशुद्ध’ नहीं- में महाविभाजन पर फली-फूली, चूंकि भाजपा इस विभाजन को तमाम विनाशकारी नतीजों के साथ चरम विंदु पर पहुंचा रही है इसलिए इन तीनों देशों में महान विचारक यकीनन पैदा होंगे और वे इन तीनों के भ्रातृत्वपूर्ण पुनरेकीकरण के लिए जनमत तैयार करेंगे। निश्चिंत रहिए, वो दिन भाजपा जैसी ताकतों के लिए कयामत का दिन होगा।
उन्होंने लिखा कि भारत में वैज्ञानिक विचारों का पुनरूत्थान उनका सपना है। उनका सपना था कि भारत राष्ट्रों के रूप में एक ऐसे देश के रूप में उभरेगा जिससे कमजोर से कमजोर पड़ोसी को भी डर नहीं लगेगा और जिसे दुनिया का सबसे ताकतवर देश भी धमका नहीं पाएगा, जहां सरकारें और राज्य मशीनरी किसी की व्यक्तिगत धार्मिक आस्थाओं में हस्तक्षेप किए बगैर वैज्ञानिक व तार्किक विश्व दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करेगी। जहां प्रतिनिधि सभाओं में महिलाओं के लिए पचास फीसदी जगह सुरक्षित होगी, प्रेम विवाह रिवाज बन जाएगा और तलाक देना सहज होगा। जहां बच्चों को तंगहाली नहीं झेलना पड़ेगा, उनके देखभाल की जिम्मेवारी माता-पिता से ज्यादा राज्य की होगी, जहां अछूतों को हरिजन कहकर गौरवान्वित करने का अंत हो जाएगा और दलित नाम की कोई श्रेणी न रहेगी, जातियां विघटित होकर वर्गाें का रूप ले लेंगी, जहां हर नागरिक की राजनीतिक मुक्ति को सबसे ज्यादा कीमती समझा जाएगा और जहां असहमति की वैधता होगी, जहां कला व साहित्य की किसी भी रचना पर राज्य की ओर से कोई सेंसर न लगेगा। अपने लेख के अंत में उन्होंने लिखा है- ‘मेरे सपनों का भारत भारतीय समाज में कार्यरत बुनियादी प्रक्रियाओं पर आधारित है जिसे साकार करने के लिए मेरे जैसे बहुतेरे लोगों ने अपने खून की अंतिम बूंद तक बहाने की शपथ ले रखी है।’ जाहिर है उन सपनों को साकार करने के लिए के लिए लोग संकल्पबद्ध हैं, संघर्षों के बीच हैं। उनका सपना हम सबका सपना है, जिसकी प्रासंगिकता पहले से भी अधिक बढ़ गई है। का. जवाहरलाल सिंह ने ठीक ही कहा कि उन्हें याद करना हमारे लिए महज औपचारिकता नहीं है। 




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