Wednesday, September 24, 2014

लसाड़ी में माले द्वारा शहीद मेला और संकल्प सभा का आयोजन


माले शहीदों के सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष चला रही है: अरुण सिंह


लसाड़ी शहीद स्मारक, भोजपुर 
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का भोजपुर में भी खासा असर था। आंदोलनकारी डाकघर, नहर आॅफिस, गेस्ट हाउस, तहसीलघर आदि में तोड़फोड़ कर रहे थे, टेलिफोन के तार काट रहे थे। 15 सितंबर 1942 इन आंदोलनकारियों को सबक सिखाने के मकसद से 14 लारियों में ब्रिटिश सैनिक लसाड़ी गांव पहुंचे और मशीनगनों से हमला कर दिया। यहां के किसानों ने उनकी मशीनगनों का सामना अपने पंरपरागत अस्त्रों से किया और लड़ते हुए शहीद हुए। लसाड़ी और बगल के गांव चासी और ढकनी के गिरीवर सिंह, शीतल लोहार, रामधारी पांडेय, रामदेव साह, केश्वर सिंह, महादेव सिंह, वासुदेव सिंह, जगरनाथ सिंह, सभापति सिंह, शीतल प्रसाद सिंह, केशव प्रसाद सिंह के साथ एक महिला अकली देवी भी शहीद हुईं। 

1947 की आजादी के बाद यहां दो-दो बार शहीदों के नाम का शिलापट्ट लगाया गया, लेकिन उन शिलापट्टों पर धूल जमती गई। सिर्फ चंद पढ़े लिखे लोगों को ही उस इतिहास का पता था। लेकिन जब क्रांतिकारी किसान आंदोलन के नायक का. रामनरेश राम सहार से विधायक बने तो उन्होंने उन शहीदों के बारे में तथ्यों को जुटाया तथा उनके स्मारक का निर्माण करवाया। लसाड़ी और आसपास की जनता ने भी इसमें मदद की और सन् 2000 में भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने इसका उद्घाटन किया। उन्होंने यहां शहीद मेला लगाने की परपंरा की शुरुआत भी कराई।

का. रामनरेश राम ने लसाड़ी शहीद स्मारक के निर्माण में काफी दिलचस्पी ली थी और पटना में मौजूद शहीद स्मारक की तरह ही इसे बनाने का उनका सपना था। स्मारक निर्माण के दौरान भी वे लगातार मौजूद रहते थे। जब इस स्मारक का निर्माण कार्य चल रहा था, तब शासकवर्गीय पार्टियों के लोग दुष्प्रचार कर रहे थे कि वे गोइंठा में घी सुखा रहे हैं, लेकिन आज इसका श्रेय लेने के लिए उनके बीच होड़ लगी रहती है। अब हर साल यहां सरकारी आयोजन भी होने लगा है। 

हर साल की तरह इस साल 15 सितंबर को जब हम लसाड़ी पहुंचे, तब तक शहीद स्मारक पर मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी और शासकवर्गीय पार्टियों के प्रतिनिधियों की गाडि़यों का काफिला जा चुका था। जिस क्रांतिकारी शख्सियत ने आजादी के आंदोलन के इन गुमनाम शहीदों के इतिहास के अंधेरे से बाहर लाकर उनका स्मारक बनाने की पहल की और हर साल वहां शहीद मेला और संकल्प सभा आयोजित करने की परंपरा शुरू की, उनकी चर्चा बिल्कुल न हो, इसकी शासकवर्गीय पार्टियों के नेताओं, मंत्रियों, सांसद, विधायकों, अफसरों और अखबारों द्वारा इस बार भी हरसंभव कोशिश की गई। उन्हें लगता है कि इसके जरिए वे जनता के प्रतिरोध के इतिहास पर अपनी इजारेदारी कायम रख सकते हैैं। लेकिन का. रामनरेश राम के लिए लसाड़ी के शहीद महज इतिहास के नायक नहीं थे, वे उनके लिए जीवित संदर्भ थे। वे भाकपा-माले के आंदोलन और अपने साथियों की शहादत की परंपरा को उससे जोड़ते थे। 
पहले माले के पूर्व विधायक अरुण सिंह ने झंडात्तोलन किया। उसके बाद सबने शहीदों को श्रद्धांजलि दी। संकल्प सभा शुरू होने से पहले एक नौजवान आया जिसने ‘राजकीय शहीद स्मारक विकास समिति सह शोध संस्थान’ नाम की एक संस्था बना ली है। उसने दो पृष्ठों का एक पर्चा दिया, जिसमें प्रो. बलदेव नारायण की पुस्तक 1942 अगस्त क्रांति का अंश छपा था। लेकिन इस पर्चे में भी कहीं का. रामनरेश राम का नाम नहीं था। सभा में वक्ताओं ने यह भी बताया कि इसके निर्माण, उद्घाटन और सहयोगकर्ताओं के नाम की सूची वाले शिलापट्ट को जब इस बार लगाने लोग यहां पहुंचे तो स्थानीय पुलिस ने उसमें बाधा डाला। लोगों ने जब विरोध किया और उच्चाधिकारियों से शिकायत की, तब उन्हें इजाजत मिली। ऐसा लगता है कि राजकीय घोषित हो जाने के बाद शासकवर्ग और उसका प्रशासन इसे अपनी जागीर समझने लगा है। पिछले तीन-चार वर्षों में कुछ भ्रष्ट नेता और जनहत्यारे भी यहां आने लगे हैं और समझते हैं कि इस तरह वे शहीदों की विरासत को हड़प लेंगे। कुछ लोग अलग से शहीद अकली देवी पर आयोजन करने लगे हैं। 
अरुण सिंह 

इस बार लसाड़ी के शहीद स्मारक पर आयोजित शहीद मेला और संकल्प सभा को संबोधित करते हुए माले के बिहार राज्य स्थाई समिति सदस्य और पूर्व विधायक अरुण सिंह ने कहा कि का. रामनरेश राम ने लसाड़ी के गुमनाम शहीदों का स्मारक बनवाया था और यहां शहीद मेला की पंरपरा शुरू की थी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि अपने बहादुर पुरखों की तरह आज भी मजदूर-किसान साम्राज्यवाद और पूंजीवाद की गुलाम शासकवर्गीय पार्टियों के खिलाफ एकजुट होकर प्रतिरोध करने की प्रेरणा लें। उन्होंने कहा कि शहीदों के वंशजों का कहना है कि भ्रष्टाचार का खात्मा और सुराज लाना उनका सपना था। अगर इस पैमाने पर देखा जाए तो इस देश की सरकारें उनके सपनों के विरोध में ही नजर आएंगी। आज काॅरपोरेट घराने धीरे-धीरे आर्थिक-राजनीतिक संस्थाओं पर कब्जा कर रही हैं। महंगाई और भ्रष्टाचार के विरोध में मोदी की सरकार बनाने के लिए काॅरपोरेट पूंजी के बल पर जबर्दस्त प्रचार करके सत्ता हासिल की गई, पर न महंगाई कम हो रही है और न ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है। सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जरूरतों को पूरा करने के बजाए सरकार हर क्षेत्र को पूंजीपतियों के हाथ बेच रही है। रेल और सुरक्षा के मामलों में एफडीआई इसी की बानगी है। भाजपा का विकल्प होने का दावा करने वाली कांग्रेस, राजद, जद-यू जैसी पार्टियों के पास इस अर्थनीति और उसके सांप्रदायिक फासीवादी अभियान का कोई वैचारिक विकल्प नहीं है। आज हम पर और हमारी भावी पीढ़ी के ऊपर जो भीषण खतरे मंडरा रहे हैं, उसके खिलाफ लसाड़ी के शहीदों के रास्ते पर चलकर संघर्ष करना होगा, इसी के जरिए उनके सपनों को साकार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि शासकवर्गीय पार्टियों ने स्वाधीनता आंदोलन के शहीदों के सपनों के साथ विश्वासघात किया है। भाकपा-माले से ये पार्टियां इसलिए डरती हैं, क्योंकि माले आजादी के आंदोलन के सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष चला रही है। 

सुदामा प्रसाद 
अखिल भारतीय किसान सभा के प्रांतीय सचिव का. सुदामा प्रसाद ने विस्तार से किसानों के संकटों के बारे में बताते हुए कहा कि कृषि के क्षेत्र में लगातार सरकारी सब्सिडी खत्म की जा रही है और पूंजीपति घरानों को भारी छूट दी जा रही है। मोदी की सरकार ने धान खरीद पर मिलने वाले बोनस को खत्म कर दिया है। केंद्र और बिहार सरकार को सोन नहरों के आधुनिकीकरण की कोई चिंता नहीं है। ऐसी सरकारों से जुड़ी हुई पार्टियों के प्रतिनिधि लसाड़ी के शहीद किसानों के सपनों को साकार नहीं कर सकते। उन्होंने 12 अक्टूबर को ‘खेत, खेती, किसान बचाओ/तबाही लूट का राज मिटाओ’ नारे के साथ पीरो में होने वाले सम्मेलन के लिए भी किसानों को आमंत्रित किया। 

माले जिला सचिव का. जवाहरलाल सिंह ने कहा कि जनता के शोषण और लूट के मामले में तमाम शासकवर्गीय पार्टियां एक हैं। जिन काले अंगरेजों के कुशासन की आशंका भगतसिंह ने जाहिर की थी, वह आज ज्यादा स्पष्ट रूप से दिख रहा है। लसाड़ी के शहीदों की परंपरा को आगे बढ़ाना है तो मौजूदा कुशासन के खिलाफ लड़ना ही होगा। 

माले जिला कमेटी सदस्य मनोज मंजिल ने कहा कि आज भी जनता के हक-अधिकार की लड़ाई लड़ने वालों के लिए शासन-प्रशासन के पास लाठी-गोली और जेल है। भोजपुर के बहादुर बेटों ने तो कुर्बानी देकर लसाड़ी के शहीदों की परंपरा को आगे बढ़ाया है। जबकि शासकवर्ग शहीदों के सपनों की ही हत्या करने में लगा हुआ है। 

आइसा के राज्य अध्यक्ष राजू यादव ने कहा कि जिनका इतिहास देश के आजादी के आंदोलन में भागीदारी के बजाय गद्दारी का रहा, वे आज केंद्र में सत्ता में है। ऐसी सरकार के लिए लसाड़ी के किसानों ने शहादत नहीं दी थी। आइसा के राज्य सचिव अजित कुशवाहा ने विस्तार से केंद्र सरकार की वादाखिलाफी के बारे में बोलते हुए कहा कि ऐसी शक्तियों के खिलाफ ही रामनरेश राम जनता को संगठित करना चाहते थे। लसाड़ी का स्मारक हमें इस कार्यभार को पूरा करने की पे्ररणा देता है। अगिआंव प्रखंड के सचिव का. रघुवर पासवान ने कहा कि जो लोग खेती और मजदूरी करते हैं, लसाड़ी के शहीदों ने उस वर्ग के लिए शहादत दी थी। उसी वर्ग के नेता रामनरेश राम ने उन्हीं इतिहास के अंधेरे से बाहर निकाला, लेकिन अब शासकवर्ग और प्रशासन उनका नाम मिटा देना चाहता है, जिसे बिल्कुल बर्दास्त नहीं किया जाएगा। संकल्प सभा को खेमस के जिला अध्यक्ष सिद्धनाथ राम, विमल यादव ने भी संबोधित किया। संचालन उपेंद्र सिंह ने किया। जनकवि कृष्णकुमार निर्मोही ने जनगीत सुनाए। संकल्प सभा से पहले अरुण सिंह ने झंडातोलन किया।