Friday, December 19, 2014

भोजपुर में का. विनोद मिश्र स्मृति दिवस


भाकपा-माले का. विनोद मिश्र के सपनों के भारत के निर्माण हेतु संकल्पबद्ध है : का. जवाहरलाल सिंह
सांप्रदायिक फासीवादियों की झूठ, लूट और उन्माद की राजनीति के खिलाफ माले का संघर्ष जारी रहेगा 

भाकपा-माले की ओर से पूरे देश में पूर्व राष्ट्रीय महासचिव का. विनोद मिश्र के स्मृति दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाया जाता है। 18 दिसंबर को उनके 16वें स्मृति दिवस पर मैं आरा में था। यहां आरा स्थित जिला कार्यालय समेत भोजपुर जिले के विभिन्न प्रखंडों के लगभग 200 ब्रांच कमिटियों में भाकपा-माले के नेताओं, कार्यकर्ताओं और सदस्यों ने आज की राजनीतिक परिस्थितियों में उनकी क्रांतिकारी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। आरा की संकल्प सभा में पार्टी पोलित ब्यूरो सदस्य का. स्वदेश भट्टाचार्य, केंद्रीय कमेटी सदस्य का. नंदकिशोर प्रसाद, जिला सचिव का. जवाहरलाल सिंह, जसम के राष्ट्रीय सहसचिव जितेंद्र कुमार, आइसा के राज्य सचिव अजीत कुशवाहा, जिला अध्यक्ष शिवप्रकाश रंजन, का. मीरा जी, ऐपवा नेता शोभा मंडल और विंदु सिन्हा, जिला स्थाई समिति सदस्य का. जितेद्र सिंह, श्रमिक संगठन एक्टू के यदुनंदन चौधरी, इंकलाबी नौजवान सभा के सत्यदेव, निर्माण मजदूर यूनियन के बालमुकुंद चैधरी, पार्टी कार्यालय सचिव अशोक कुमार सिंह, आॅल इंडिया प्रोग्रेसिव एडवोकेट एसोसिएशन के अमित कुमार बंटी, माले नगर कमिटी सदस्य सुरेश पासवान, लक्ष्मी पासवान, दीनानाथ सिंह, राजेंद्र यादव, राजनाथ राम समेत कई महत्वपूर्ण पार्टी कार्यकर्ता और सदस्य मौजूद थे। इस मौके पर का. विनोद मिश्र समेत पार्टी के तमाम शहीद साथियों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। संकल्प सभा का संचालन का. दिलराज प्रीतम ने किया। इस मौके पर वार्ड पार्षद गोपाल प्रसाद ने झंडात्तोलन किया।
संकल्प सभा को संबोधित करते हुए पार्टी के जिला सचिव का. जवाहरलाल सिंह ने कहा कि महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और एफडीआई को खत्म करने और काला धन वापस लाने से भाजपा सरकार मुकर चुकी है। जनता के गुस्से से बचने के लिए उसमें फूट डालने के लिए वह देश में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने में लगी हुई है। वह देश की साझी संस्कृति और लोकतांत्रिक मूल्यों को तहस-नहस कर रही है। उसका ‘मेक इन इंडिया’ दरअसल इस देश की जनता के श्रम और प्राकृतिक संसाधनों को सस्ते भाव में देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हाथ बेच देने की योजना है। आज केंद्र की कारपोरेटपरस्त सांप्रदायिक फासीवादी सरकार के खिलाफ देश के आदिवासी, अल्पसंख्यक, किसान, श्रमिक, छात्र-नौजवान सबका असंतोष बढ़ने लगा है। बेशक पूंजीवादी मीडिया अभी भी जनता की उम्मीदों से गद्दारी करने वाली और सांप्रदायिक उन्माद व आतंक को शह देने वाली मोदी के प्रचार में लगी हुई है, लेकिन इससे जनता का विक्षोभ बहुत देर तक नहीं शांत होगा। भाकपा-माले ने का. विनोद मिश्र के स्मृति दिवस पर जनता के तमाम लोकतांत्रिक सवालों पर बढ़-चढ़कर संघर्ष करने तथा अपने सांगठनिक तंत्र को और भी व्यापक और मजबूत बनाते हुए सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों की झूठ, लूट और उन्माद की राजनीति के खिलाफ लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया है। 

इसके पहले उन्होंने का. विनोद मिश्र की ऐतिहासिक भूमिका को याद करते हुए कहा कि जब शासकवर्ग ने भीषण दमन के जरिए नक्सलबाड़ी आंदोलन को कुचल डाला था, जब पार्टी कई गुटों में बंट चुकी थी, तब विनोद मिश्र ने इंजीनियरिंग की अपनी कैरियर को छोड़कर भारतीय क्रांति की सुसंगत दिशा में जनता को संगठित करने की जिम्मेवारी स्वीकार की। पहले और दूसरे महासचिव का. चारु मजुमदार और का. जौहर तथा भोजपुर आंदोलन के संस्थापक का. जगदीश मास्टर की शहादत के बाद उन्होंने एक तरह से पार्टी को फिर से संगठित किया। उन्होंने अपने विचार और व्यवहार से हमें यह सिखाया कि एक सच्चा क्रांतिकारी जटिल से जटिल, कठिन से कठिन परिस्थितियों और दमन के अंधेरे दौर में भी रौशनी की उम्मीद नहीं छोड़ता। बगैर निराश और हताश हुए उन्होंने तमाम संभावनाओं की तलाश की और भाकपा-माले को पूरे देश में क्रांतिकारी वामपंथी पार्टी के तौर पर स्थापित कर दिया। उन्होंने जिस भारत का सपना देखा उस भारत को बनाने की लड़ाई लड़ने के लिए माले का हर सदस्य संकल्पबद्ध है। 

पेशावर में बच्चों की हत्या और भारत पाकिस्तान दोनों देशों में साम्राज्यवाद, सांप्रदायिकता और आतंकवाद की राजनीति के बारे में सोचते हुए मुझे का. विनोद मिश्र के लेख ‘मेरे सपनों का भारत’ की पंक्तियां नए सिरे से याद आईं। का. वीएम ने लिखा है- मेरे सपनों का भारत निस्संदेह एक अखंड भारत है जहां एक पाकिस्तानी मुसलमान को विवर्तन की जड़े तलाशने के लिए किसी ‘विसा’ की आवश्यकता नहीं होगी, जहां, इसी तरह, किसी भारतीय के लिए महान सिंधुघाटी सभ्यता विदेश में स्थित नहीं होगी, और जहां बंगाली हिंदू शरणार्थी अंततः ढाका की कड़वी स्मृतियों के आंसू पोंछ लेंगे और बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत में विदेशी कहकर चूहों की तरह नहीं खदेड़ा जाएगा। क्या मेरी आवाज भाजपा से मिलती-जुलती लगी है? लेकिन भाजपा तो भारत के मुस्लिम पाकिस्तान और हिंदू भारत- अलबत्ता उतना ‘विशुद्ध’ नहीं- में महाविभाजन पर फली-फूली, चूंकि भाजपा इस विभाजन को तमाम विनाशकारी नतीजों के साथ चरम विंदु पर पहुंचा रही है इसलिए इन तीनों देशों में महान विचारक यकीनन पैदा होंगे और वे इन तीनों के भ्रातृत्वपूर्ण पुनरेकीकरण के लिए जनमत तैयार करेंगे। निश्चिंत रहिए, वो दिन भाजपा जैसी ताकतों के लिए कयामत का दिन होगा।
उन्होंने लिखा कि भारत में वैज्ञानिक विचारों का पुनरूत्थान उनका सपना है। उनका सपना था कि भारत राष्ट्रों के रूप में एक ऐसे देश के रूप में उभरेगा जिससे कमजोर से कमजोर पड़ोसी को भी डर नहीं लगेगा और जिसे दुनिया का सबसे ताकतवर देश भी धमका नहीं पाएगा, जहां सरकारें और राज्य मशीनरी किसी की व्यक्तिगत धार्मिक आस्थाओं में हस्तक्षेप किए बगैर वैज्ञानिक व तार्किक विश्व दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करेगी। जहां प्रतिनिधि सभाओं में महिलाओं के लिए पचास फीसदी जगह सुरक्षित होगी, प्रेम विवाह रिवाज बन जाएगा और तलाक देना सहज होगा। जहां बच्चों को तंगहाली नहीं झेलना पड़ेगा, उनके देखभाल की जिम्मेवारी माता-पिता से ज्यादा राज्य की होगी, जहां अछूतों को हरिजन कहकर गौरवान्वित करने का अंत हो जाएगा और दलित नाम की कोई श्रेणी न रहेगी, जातियां विघटित होकर वर्गाें का रूप ले लेंगी, जहां हर नागरिक की राजनीतिक मुक्ति को सबसे ज्यादा कीमती समझा जाएगा और जहां असहमति की वैधता होगी, जहां कला व साहित्य की किसी भी रचना पर राज्य की ओर से कोई सेंसर न लगेगा। अपने लेख के अंत में उन्होंने लिखा है- ‘मेरे सपनों का भारत भारतीय समाज में कार्यरत बुनियादी प्रक्रियाओं पर आधारित है जिसे साकार करने के लिए मेरे जैसे बहुतेरे लोगों ने अपने खून की अंतिम बूंद तक बहाने की शपथ ले रखी है।’ जाहिर है उन सपनों को साकार करने के लिए के लिए लोग संकल्पबद्ध हैं, संघर्षों के बीच हैं। उनका सपना हम सबका सपना है, जिसकी प्रासंगिकता पहले से भी अधिक बढ़ गई है। का. जवाहरलाल सिंह ने ठीक ही कहा कि उन्हें याद करना हमारे लिए महज औपचारिकता नहीं है। 




Thursday, December 11, 2014

शहादत दिवस पर याद किए गए मास्टर जगदीश



मास्टर जगदीश और उनकी क्रांतिकारी राजनीति ही पूंजीपरस्त राजनीति का सही विकल्प हो सकती है

आरा: 10 दिसंबर 2014
भोजपुर के क्रांतिकारी वामपंथी आंदोलन के संस्थापक का. जगदीश मास्टर के 43 वें शहादत दिवस पर आज स्थानीय पूर्वी नवादा स्थित मास्टर जगदीश स्मृति स्थल के पास भाकपा-माले नगर कमिटी की ओर से एक संकल्प सभा आयोजित की गई। जिसके मुख्य वक्ता भाकपा-माले के जिला सचिव का. जवाहरलाल सिंह ने कहा कि का. जगदीश मास्टर ने एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए शहादत दी, जिसमें जमीन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजी-रोटी सबको हासिल हो और सबके लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की गारंटी हो। आज की जो राजनीतिक परिस्थितियां हैं, उसमें महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भूमि अधिग्रहण कानून और श्रम कानून में संशोधन तथा दिल्ली-पटना में जारी कुशासन के खिलाफ आंदोलन की तमाम ताकतों को एकजुट करते हुए क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए खुद को न्यौछावर कर देना ही का. जगदीश मास्टर के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 
 का. जवाहरलाल सिंह ने कहा कि कांग्रेस के भ्रष्टाचार, कुशासन, महंगाई को खत्म करने तथा 100 दिन में काला धन वापस लाकर हर परिवार को 15-20 लाख रुपये देने के वायदे के साथ आई भाजपा की सरकार ने जनता को धोखा दिया है। आज गरीबों के लिए बनने वाली योजनाओं को खत्म किया जा रहा है और अडानी सरीखे पूंजीपतियों के लिए जनता के खजाने को खोल दिया गया है। माले ने चुनाव के दौरान ही कहा था कि मोदी चाय बेचने वाले नहीं, देश बेचने वाले हैं, और आज यह बात सही साबित हो गई है।

का. जवाहरलाल सिंह ने कहा कि भाजपा लगातार सामंती-सांप्रदायिक उन्माद भड़काने में लगी हैं। एक ऐसा व्यक्ति जो रणवीर सेना सुप्रीमो ब्रह्मेश्वर सिंह को गांधी कहता है, जिसके घर चोरी के बाद करोड़ों अवैध रुपयों का पता चलता है, जो मोदी को वोट न देने वालों को पाकिस्तान चले जाने की धमकी देता है, उसे मंत्रीमंडल में शामिल करके मोदी ने अपना असली चेहरा जाहिर कर दिया है। अमीरदास आयोग की रिपोर्ट लागू हुई होती, तो गिरिराज सिंह जैसे लोग जेल में होते और सामंती ताकतों पर अंकुश लगता। लेकिन नीतीश-मांझी सरकार ने उसे ठंढे बस्ते में डालकर इन सामंती-सांप्रदायिक ताकतों का मनोबल ही बढ़ाने का काम किया। मांझी सरकार का तो यह हाल है कि आज बिहार में सामंती ताकतें महादलितों की हत्या और महादलित महिलाओं के साथ गैंगरेप जैसी घटनाओं को अंजाम दे रही हैं। 

जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय सहसचिव कवि जितेंद्र कुमार ने कहा कि जगदीश मास्टर एक लोकतांत्रिक समाज के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध थे। आज जब पूरा लोकतंत्र ही खतरे में है, तब उनकी लड़ाई को और मजबूती से आगे बढ़ाना ही सही राजनैतिक विकल्प हो सकता है। उन्होंने कहा कि भाजपा की सरकार आने के बाद किसी के लिए अच्छे दिन नहीं आए हैं। कानून व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ है। गैंगरेप की घटनाएं और स्त्रियों के मान-सम्मान पर हमले बढ़ गए हैं। भूमि अधिग्रहण कानून में जो संशोधन किया जा रहा है, उससे छोटे-मध्यम किसानों की जमीन भी सुरक्षित नहीं रह जाएगी। सरकार जब चाहेगी पूंजीपतियों को उनकी जमीन दे देगी। रोजगार के मोर्चे पर भी यह सरकार फेल साबित हुई है। एसएससी में 16000 वैकेंसी थी, जिसे घटाकर इस बार 8000 कर दिया गया। उन्होंने कहा कि मध्यवर्ग के जिन लोगों ने मोदी और भाजपा को वोट दिया, उनके जीवन के संकट भी बढ़ने वाले हैं। उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक किसान-मजदूरों, बेरोजगार नौजवानों, आदिवासियों, महिलाओं के दबाव के बगैर इन पूंजीपरस्त सरकारों पर अंकुश संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि आज क्रातिंकारी सरकार के निर्माण के लिए अपनी ताकत लगाने की जरूरत है।

‘समकालीन जनमत’ के संपादक सुधीर सुमन ने कहा कि मास्टर जगदीश और उनके साथियों ने गरीब-मेहनतकश लोगों की राजसत्ता बनाने के लिए लड़ाई लड़ी और अपनी शहादत दी। उनके साथी रामनरेश राम हों या उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाने वाले का. शाह चांद और का. महेंद्र सिंह जैसे जननेता, इन लोगों ने जमीनी स्तर पर इसका उदाहरण भी पेश किया कि गरीब-मेहनतकशों का राज आएगा, तो कितने ईमानदारी के साथ लोकतांत्रिक तरीके से समाज की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए काम होगा। मास्टर जगदीश और उनके साथियों ने धन की राजनीति के समानांतर क्रातिकारी जनराजनीति का विकल्प दिया। पूरी बेशर्मी के साथ पूंजीपतियों का हित साधने में लगी भाजपा को यही क्रांतिकारी जनराजनीति शिकस्त दे सकती है। 

आइसा जिला अध्यक्ष सबीर ने कहा कि अन्याय की ताकतों के खिलाफ न्याय की लड़ाई को जारी रखना ही जगदीश मास्टर को याद करने का सही तरीका है। माले आरा नगर कमिटी सदस्य राजनाथ राम ने मास्टर जगदीश से हुई एक मुलाकात को याद करते हुए कहा कि वे वर्गीय एकता के प्रति संकल्पित थे। वार्ड पार्षदसुधा ने मास्टर जगदीशकी पंरपरा को आगे बढ़ाने की अपील की। वार्ड पार्षद गोपाल प्रसाद ने कहा कि मास्टर जगदीश और उनके साथियों की शहादत के बाद भी वह लड़ाई जारी है। मूल लड़़ाई अमीर और गरीब के बीच है। मंच पर जितेंद्र सिंह, ब्यासमुनि सिंह, अशोक कुमार सिंह भी मौजूद थे। संचालन करते हुए नगर सचिव का. दिलराज प्रीतम ने महंगाई, भूमि अधिग्रहण, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक उन्माद आदि के खिलाफ 12 दिसंबर को वामपंथी दलों के संयुक्त धरना और 18 दिसंबर को भाकपा-माले के पूर्व महासचिव का. विनोद मिश्र के स्मृति दिवस पर होने वाले कार्यक्रम में लोगों से शामिल होने की अपील की। इस अवसर पर का. सत्यदेव कुमार, सुरेश प्रसाद, दीनानाथ सिंह, शिवप्रकाश रंजन, राजू राम, उपेद्र पासवान, संदीप, सुधीर कुमार, राजू प्रसाद, देवानंद प्रसाद, लक्ष्मी पासवान, अमित कुमार बंटी, बालमुकुंद चौधरी कृष्णरंजन गुप्ता आदि मौजूद थे। 

Sunday, October 26, 2014

सहार में दंगा नहीं, सुनियोजित हमला : अजीत कुशवाहा

सहार (भोजपुर ) में दंगा या हमला?
यह कल रात से ही चर्चा का विषय बना हुआ है।
कल शाम से ये खबर आग की तरह पूरे जिले में फ़ैल गयी कि सहार में लक्ष्मी पूजा विसर्जन के दौरान सांप्रदायिक दंगा हो गया है। यह वही सहार है जो सामंती ताकतों के खिलाफ गरीबो की संघर्षशील मजबूत एकता का प्रतीक रहा है। जहाँ से गरीबो के संघर्ष के महायोद्धा कामरेड रामनरेश राम आजीवन विधायक रहे थे। यह वही सहार है जिसने पूरे बिहार को सामंतवाद विरोधी संघर्ष का नया मॉडल दिया, जहाँ के हिन्दू और मुसलमानों एक साथ मिलकर गरीबो की लड़ाई को एक नया आयाम दिया। आज अचानक किसी दंगे का हो जाना निश्चित तौर पर दिमाग में यह हलचल पैदा करता है और हकीकत जानने की स्वाभाविक जिज्ञासा भी होती है कि आखिर सच्चाई क्या है।
आज सुबह रामनरेश राम की चौथी पुण्यतिथि पर हमलोग सहार पहुंचे और वहां के स्थानीय लोगो से बातचीत की तो सच्चाई से रूबरू हुए।

दंगे की असली हकीकत 
भाकपा(माले) के पोलित ब्यूरो सदस्य स्वदेश भट्टचार्य जी, अमर जी, पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद, भोजपुर जिला सचिव जवाहर जी, सुदामा प्रसाद, राजू यादव सहित माले के स्थानीय नेताओ के साथ हमलोग सहार के लोगो से बातचीत करने और कल की घटना की तहकीकात करने उनके बीच पहुंचे, तो लोगो ने काफी तफसील से पूरी घटना का विवरण पेश किया। उनकी कही हुई बातें, मुसलमानो की जली हुई दुकानें, ईंट-पत्थर से किये गए हमलों को बयां करते हुए उनके घर, इस बात को स्पष्ट कर रहे थे कि यहाँ कोई दंगा नहीं हुआ है, बल्कि सुनियोजित तरीके से लक्ष्मी पूजा को आधार बनाकर मुसलमानों पर हमला किया गया है. जब हमला किया जा रहा था, दुकानें लुटी जा रही थीं, उनमें आग लगाई जा रही थी ठीक उसी समय भाजपा के स्थानीय नेता और तरारी विधान सभा के जदयू विधायक सुनील पाण्डेय सहित भोजपुर के D.M, S.P सहार बाजार में स्थित थाने में बैठे हुए थे।
ये तमाम बातें इसको और भी ज्यादा स्पष्ट करती हैं कि सहार में कोई दंगा नहीं हुआ,  बल्कि यहाँ सुनियोजित हमला किया गया।

हमलो में जली और लुटी हुई मुस्लिम समुदाय के लोगों  की दुकानों की कुछ तस्वीरें. 




(आइसा के राज्य सचिव अजीत कुशवाहा के फेसबुक वाल से)

Wednesday, September 24, 2014

लसाड़ी में माले द्वारा शहीद मेला और संकल्प सभा का आयोजन


माले शहीदों के सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष चला रही है: अरुण सिंह


लसाड़ी शहीद स्मारक, भोजपुर 
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का भोजपुर में भी खासा असर था। आंदोलनकारी डाकघर, नहर आॅफिस, गेस्ट हाउस, तहसीलघर आदि में तोड़फोड़ कर रहे थे, टेलिफोन के तार काट रहे थे। 15 सितंबर 1942 इन आंदोलनकारियों को सबक सिखाने के मकसद से 14 लारियों में ब्रिटिश सैनिक लसाड़ी गांव पहुंचे और मशीनगनों से हमला कर दिया। यहां के किसानों ने उनकी मशीनगनों का सामना अपने पंरपरागत अस्त्रों से किया और लड़ते हुए शहीद हुए। लसाड़ी और बगल के गांव चासी और ढकनी के गिरीवर सिंह, शीतल लोहार, रामधारी पांडेय, रामदेव साह, केश्वर सिंह, महादेव सिंह, वासुदेव सिंह, जगरनाथ सिंह, सभापति सिंह, शीतल प्रसाद सिंह, केशव प्रसाद सिंह के साथ एक महिला अकली देवी भी शहीद हुईं। 

1947 की आजादी के बाद यहां दो-दो बार शहीदों के नाम का शिलापट्ट लगाया गया, लेकिन उन शिलापट्टों पर धूल जमती गई। सिर्फ चंद पढ़े लिखे लोगों को ही उस इतिहास का पता था। लेकिन जब क्रांतिकारी किसान आंदोलन के नायक का. रामनरेश राम सहार से विधायक बने तो उन्होंने उन शहीदों के बारे में तथ्यों को जुटाया तथा उनके स्मारक का निर्माण करवाया। लसाड़ी और आसपास की जनता ने भी इसमें मदद की और सन् 2000 में भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने इसका उद्घाटन किया। उन्होंने यहां शहीद मेला लगाने की परपंरा की शुरुआत भी कराई।

का. रामनरेश राम ने लसाड़ी शहीद स्मारक के निर्माण में काफी दिलचस्पी ली थी और पटना में मौजूद शहीद स्मारक की तरह ही इसे बनाने का उनका सपना था। स्मारक निर्माण के दौरान भी वे लगातार मौजूद रहते थे। जब इस स्मारक का निर्माण कार्य चल रहा था, तब शासकवर्गीय पार्टियों के लोग दुष्प्रचार कर रहे थे कि वे गोइंठा में घी सुखा रहे हैं, लेकिन आज इसका श्रेय लेने के लिए उनके बीच होड़ लगी रहती है। अब हर साल यहां सरकारी आयोजन भी होने लगा है। 

हर साल की तरह इस साल 15 सितंबर को जब हम लसाड़ी पहुंचे, तब तक शहीद स्मारक पर मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी और शासकवर्गीय पार्टियों के प्रतिनिधियों की गाडि़यों का काफिला जा चुका था। जिस क्रांतिकारी शख्सियत ने आजादी के आंदोलन के इन गुमनाम शहीदों के इतिहास के अंधेरे से बाहर लाकर उनका स्मारक बनाने की पहल की और हर साल वहां शहीद मेला और संकल्प सभा आयोजित करने की परंपरा शुरू की, उनकी चर्चा बिल्कुल न हो, इसकी शासकवर्गीय पार्टियों के नेताओं, मंत्रियों, सांसद, विधायकों, अफसरों और अखबारों द्वारा इस बार भी हरसंभव कोशिश की गई। उन्हें लगता है कि इसके जरिए वे जनता के प्रतिरोध के इतिहास पर अपनी इजारेदारी कायम रख सकते हैैं। लेकिन का. रामनरेश राम के लिए लसाड़ी के शहीद महज इतिहास के नायक नहीं थे, वे उनके लिए जीवित संदर्भ थे। वे भाकपा-माले के आंदोलन और अपने साथियों की शहादत की परंपरा को उससे जोड़ते थे। 
पहले माले के पूर्व विधायक अरुण सिंह ने झंडात्तोलन किया। उसके बाद सबने शहीदों को श्रद्धांजलि दी। संकल्प सभा शुरू होने से पहले एक नौजवान आया जिसने ‘राजकीय शहीद स्मारक विकास समिति सह शोध संस्थान’ नाम की एक संस्था बना ली है। उसने दो पृष्ठों का एक पर्चा दिया, जिसमें प्रो. बलदेव नारायण की पुस्तक 1942 अगस्त क्रांति का अंश छपा था। लेकिन इस पर्चे में भी कहीं का. रामनरेश राम का नाम नहीं था। सभा में वक्ताओं ने यह भी बताया कि इसके निर्माण, उद्घाटन और सहयोगकर्ताओं के नाम की सूची वाले शिलापट्ट को जब इस बार लगाने लोग यहां पहुंचे तो स्थानीय पुलिस ने उसमें बाधा डाला। लोगों ने जब विरोध किया और उच्चाधिकारियों से शिकायत की, तब उन्हें इजाजत मिली। ऐसा लगता है कि राजकीय घोषित हो जाने के बाद शासकवर्ग और उसका प्रशासन इसे अपनी जागीर समझने लगा है। पिछले तीन-चार वर्षों में कुछ भ्रष्ट नेता और जनहत्यारे भी यहां आने लगे हैं और समझते हैं कि इस तरह वे शहीदों की विरासत को हड़प लेंगे। कुछ लोग अलग से शहीद अकली देवी पर आयोजन करने लगे हैं। 
अरुण सिंह 

इस बार लसाड़ी के शहीद स्मारक पर आयोजित शहीद मेला और संकल्प सभा को संबोधित करते हुए माले के बिहार राज्य स्थाई समिति सदस्य और पूर्व विधायक अरुण सिंह ने कहा कि का. रामनरेश राम ने लसाड़ी के गुमनाम शहीदों का स्मारक बनवाया था और यहां शहीद मेला की पंरपरा शुरू की थी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि अपने बहादुर पुरखों की तरह आज भी मजदूर-किसान साम्राज्यवाद और पूंजीवाद की गुलाम शासकवर्गीय पार्टियों के खिलाफ एकजुट होकर प्रतिरोध करने की प्रेरणा लें। उन्होंने कहा कि शहीदों के वंशजों का कहना है कि भ्रष्टाचार का खात्मा और सुराज लाना उनका सपना था। अगर इस पैमाने पर देखा जाए तो इस देश की सरकारें उनके सपनों के विरोध में ही नजर आएंगी। आज काॅरपोरेट घराने धीरे-धीरे आर्थिक-राजनीतिक संस्थाओं पर कब्जा कर रही हैं। महंगाई और भ्रष्टाचार के विरोध में मोदी की सरकार बनाने के लिए काॅरपोरेट पूंजी के बल पर जबर्दस्त प्रचार करके सत्ता हासिल की गई, पर न महंगाई कम हो रही है और न ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है। सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जरूरतों को पूरा करने के बजाए सरकार हर क्षेत्र को पूंजीपतियों के हाथ बेच रही है। रेल और सुरक्षा के मामलों में एफडीआई इसी की बानगी है। भाजपा का विकल्प होने का दावा करने वाली कांग्रेस, राजद, जद-यू जैसी पार्टियों के पास इस अर्थनीति और उसके सांप्रदायिक फासीवादी अभियान का कोई वैचारिक विकल्प नहीं है। आज हम पर और हमारी भावी पीढ़ी के ऊपर जो भीषण खतरे मंडरा रहे हैं, उसके खिलाफ लसाड़ी के शहीदों के रास्ते पर चलकर संघर्ष करना होगा, इसी के जरिए उनके सपनों को साकार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि शासकवर्गीय पार्टियों ने स्वाधीनता आंदोलन के शहीदों के सपनों के साथ विश्वासघात किया है। भाकपा-माले से ये पार्टियां इसलिए डरती हैं, क्योंकि माले आजादी के आंदोलन के सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष चला रही है। 

सुदामा प्रसाद 
अखिल भारतीय किसान सभा के प्रांतीय सचिव का. सुदामा प्रसाद ने विस्तार से किसानों के संकटों के बारे में बताते हुए कहा कि कृषि के क्षेत्र में लगातार सरकारी सब्सिडी खत्म की जा रही है और पूंजीपति घरानों को भारी छूट दी जा रही है। मोदी की सरकार ने धान खरीद पर मिलने वाले बोनस को खत्म कर दिया है। केंद्र और बिहार सरकार को सोन नहरों के आधुनिकीकरण की कोई चिंता नहीं है। ऐसी सरकारों से जुड़ी हुई पार्टियों के प्रतिनिधि लसाड़ी के शहीद किसानों के सपनों को साकार नहीं कर सकते। उन्होंने 12 अक्टूबर को ‘खेत, खेती, किसान बचाओ/तबाही लूट का राज मिटाओ’ नारे के साथ पीरो में होने वाले सम्मेलन के लिए भी किसानों को आमंत्रित किया। 

माले जिला सचिव का. जवाहरलाल सिंह ने कहा कि जनता के शोषण और लूट के मामले में तमाम शासकवर्गीय पार्टियां एक हैं। जिन काले अंगरेजों के कुशासन की आशंका भगतसिंह ने जाहिर की थी, वह आज ज्यादा स्पष्ट रूप से दिख रहा है। लसाड़ी के शहीदों की परंपरा को आगे बढ़ाना है तो मौजूदा कुशासन के खिलाफ लड़ना ही होगा। 

माले जिला कमेटी सदस्य मनोज मंजिल ने कहा कि आज भी जनता के हक-अधिकार की लड़ाई लड़ने वालों के लिए शासन-प्रशासन के पास लाठी-गोली और जेल है। भोजपुर के बहादुर बेटों ने तो कुर्बानी देकर लसाड़ी के शहीदों की परंपरा को आगे बढ़ाया है। जबकि शासकवर्ग शहीदों के सपनों की ही हत्या करने में लगा हुआ है। 

आइसा के राज्य अध्यक्ष राजू यादव ने कहा कि जिनका इतिहास देश के आजादी के आंदोलन में भागीदारी के बजाय गद्दारी का रहा, वे आज केंद्र में सत्ता में है। ऐसी सरकार के लिए लसाड़ी के किसानों ने शहादत नहीं दी थी। आइसा के राज्य सचिव अजित कुशवाहा ने विस्तार से केंद्र सरकार की वादाखिलाफी के बारे में बोलते हुए कहा कि ऐसी शक्तियों के खिलाफ ही रामनरेश राम जनता को संगठित करना चाहते थे। लसाड़ी का स्मारक हमें इस कार्यभार को पूरा करने की पे्ररणा देता है। अगिआंव प्रखंड के सचिव का. रघुवर पासवान ने कहा कि जो लोग खेती और मजदूरी करते हैं, लसाड़ी के शहीदों ने उस वर्ग के लिए शहादत दी थी। उसी वर्ग के नेता रामनरेश राम ने उन्हीं इतिहास के अंधेरे से बाहर निकाला, लेकिन अब शासकवर्ग और प्रशासन उनका नाम मिटा देना चाहता है, जिसे बिल्कुल बर्दास्त नहीं किया जाएगा। संकल्प सभा को खेमस के जिला अध्यक्ष सिद्धनाथ राम, विमल यादव ने भी संबोधित किया। संचालन उपेंद्र सिंह ने किया। जनकवि कृष्णकुमार निर्मोही ने जनगीत सुनाए। संकल्प सभा से पहले अरुण सिंह ने झंडातोलन किया।

Wednesday, April 23, 2014

कुंवर सिंह : रमाकांत द्विवेदी रमता

देश जागेला त दुनिया में हाला हो जाला/ कंपनी का? परलामेंट के देवाला हो जाला
एह विचार के सिखवले बेवहार कुंवर सिंह/ जगदीशपुर के माटी के सिंगार कुंवर सिंह. 
हर साल 23 अप्रैल को आरा में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के  महांयोद्धा कुंवर सिंह का विजयोत्सव मनाया जाता है. दानापुर के विद्रोही सिपाहियों ने कुंवर सिंह के नेतृत्व में आरा को आजाद कराया. 7 दिन तक यहाँ आज़ाद सरकार रही. फिर लड़ाई आगे बढ़ी. दो-दो अंग्रेज लेफ्टिनेंट को जान गंवानी पड़ी. एक युद्ध छोड़ कर भाग गया.कुंवर सिंह को अंग्रेजों ने जगदीशपुर से बेदखल कर दिया, तब भी उन्होंने हार नहीं मानी. कानपुर, रीवा और आजमगढ़ में कंपनी की सेना से जबरदस्त लड़ाई लड़ते हुए, विजय हासिल करते हुए उन्होंने वापस जगदीशपुर पर अधिकार किया और उसके तीन दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई. अंग्रेजों की गोली जब उनके बांह में लगी तो उन्होंने तलवार से उसे काट दिया, इसकी चर्चा खूब होती है. 1857 को लेकर विद्वानों में बड़ी बहसें हैं. लेकिन जो लोग आज भी साम्राज्यवाद के खिलाफ भारतीय जनता की एकता, खासकर हिंदू-मुस्लिम एकता के हिमायती हैं. जो गांव नगर फैल रहे कंपनियों के जाल से देश को आजाद कराने की लड़ाई लड़ते रहे हैं,  जो कंपनियों का हित साधने वाली पार्लियामेंट के खिलाफ देश को जगाने के लिए संघर्ष चला रहे हैं, वे कुंवर सिंह के संघर्ष को किस तरह देखते हैं, इसे रमता जी की इस मशहूर रचना के जरिए समझा जा सकता है. सामंती-साम्प्रदायिक ताकतों  द्वारा कुंवर सिंह को अपना नायक बनाने की साजिशों का प्रतिवाद भी है यह गीत. कारपोरेटपरस्त-साम्राज्यपरस्त राजनीति के खिलाफ, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के खिलाफ जनता की आज की लड़ाइयों के सन्दर्भ में किसानों के फौजी बेटों द्वारा शुरू उस विद्रोह, जो शीघ्र ही जनविद्रोह बन गया, को आइए याद करें. कुंवर सिंह के संघर्ष ने क्रांतिकारी-वामपंथी-जनकवि रमता जी को व्यवहार के धरातल पर किन विचारों को सिखाया, आइए इस पर विचार करें.

कुंवर सिंह


झांझर भारत के नइया खेवनहार कुंवर सिंह
आजादी के सपना के सिरिजनहार कुंवर सिंह

इतिहास के होला सांपे लेखा टेढ़टाढ़ चाल
कभी सूतेला निहाल, कभी उठेला बेहाल
बढ़ल आपस के फूट, देश हो गइल पैमाल
गांवे-नगरे फएल गइल कंपनी के जाल

मने-मने करत रहन सब विचार कुंवर सिंह
अपना देश खातिर पोसत रहन प्यार कुंवर सिंह

देखत-देखत ढाका-काशी के उजार हो गइल
लंकाशायर-मैनचेस्टर के सुतार हो गइल
अने-धने  भरल-पुरल, से भिखार हो गइल
भूखड़ टापू इंगलैंड गुलजार हो गइल

चुपे चुपे होत रहन तइयार कुंवर सिंह
खीसी जरत रहन एंड़ी से कपार कुंवर सिंह

जब अनमोल कलाकार के अंगूठा कटाई
आ, बलाते जब सोहागिनी के जेवर छिनाई
दिने दूपहर सड़क पर जबकि इज्जत लुटाई
अइसन के होइ, करेजा जेकर फाट ना जाई

आंख फार के देखले लूट-मार कुंवर सिंह
कान पात के सुनले हाहाकार कुंवर सिंह

भारत माता के अचक्के में पुकार हो गइल
खीस दबल रहे भीतर से उघार हो गइल
बाढ़ आइल अइसन जोश के, दहार हो गइल
बात बढ़त-बढ़त आखिर में जूझार हो गइल

देशी फउज के बनले सरदार कुंवर सिंह
अपना देश के भइले रखवार कुंवर सिंह

रहे मोछ ना, उ बरछी के नोक रहे रे
तरूआरे अइसन तेगा अइसन चोख रहे रे
कसल सोटा अइसन देह, मन शोख रहे रे
अइसन वीर जनमावल, धनी कोख रहे रे

ओह बुढ़ारी में जवानी के उभार कुंवर सिंह
अलबेला रे बछेड़ा असवार कुंवर सिंह
गइल जिनिगी अनेर, जब निशानी ना रहल
सवंसार के जवान प’ कहानी ना रहल
जिअल-मुअल दूनों एक, जब बदानी ना रहल
छिया-छिया रे जवानी, जबकि पानी ना रहल

हुंहुंकार के सुनवले ललकार कुंवर सिंह
रने वन मचवले धुआंधार कुंवर सिंह

होश बड़े-बड़े वीर के ठेकाने ना रहल
तोप, गोला के, बनूक के कवनो माने ना रहल
केकरो हाथ, गोड़, नाक, केकरो काने ना रहल
लागल एको झापड़, ओकरा तराने ना रहल

छपाछप फेरसु चारो ओर दुधार कुंवर सिंह
नीचे खून के बहवले पवनार कुंवर सिंह

होला ईंट के उत्तर पत्थर से देवे के जबाना
कस के दुशमन से बदला लेवे के जबाना
कभी छिप के, कभी परगट लड़े के जबाना
कभी हटे के, आ, कबहीं बढ़े के जबाना

रहन अइसन फन में खूबे हुंसियार कुंवर सिंह
राते रात करस अस्सी कोश ले पार कुंवर सिंह
अधिकार पा के मुरुख मतवाला हो जाला
रउआ कतनो मनाई, सुर्तवाला हो जाला
देश जागेला त दुनिया में हाला हो जाला
कंपनी का? परलामेंट के देवाला हो जाला

एह विचार के सिखवले बेवहार कुंवर सिंह
जगदीशपुर के माटी के सिंगार कुंवर सिंह

खांव गेहूं चाहे रहे एहूं दूनों सांझे पेट
दान मुटठी खोल के होय, चाहे खाली रहे टेंट
बांह देश के उधारे, चाहे गंगाजी के भेंट
मान कायम रहे, जीवन लीला ले समेट

अस्सी बरिस के भोजपुरी चमत्कार कुंवर सिंह
लक्ष्मीबाई-तंतिया-नाना के इयार कुंवर सिंह
                       23. 4. 55

Tuesday, April 22, 2014

शायर और साक्षरताकर्मी फराज नजर ‘चांद’ को जसम की श्रद्धांजलि


जन संस्कृति मंच 

20 अप्रैल 2014

दैनिक आज 
दैनिक हिंदुस्तान 
शायर फराज नजर ‘चांद’ का निधन भोजपुर की प्रगतिशील-जनवादी साहित्यिक-सांस्कृतिक दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति है। फराज नजर चांद अपने कम्युनिस्ट पिता का. रफीक के जीवन मूल्यों के प्रति आजीवन प्रतिबद्ध रहे। आम अवाम की तरह ही अभाव, मुश्किलों और संघर्षों में उनका जीवन गुजरा। एक बेहतर दुनिया और व्यवस्था के निर्माण के सपनों के प्रति उनकी आस्था कभी खत्म नहीं हुई। उसी के तसव्वुर के साथ वे अपनी गजलें लिखते रहे। भोजपुर के साक्षरता अभियान में उन्होंने बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभाई। फराज नजर ‘चांद’ हमारी गंगा जमुनी तहजीब के नुमाइंदे थे। उनका निधन आरा शहर में सांप्रदायिक सौहार्द के प्रति समर्पित तमाम लोगों के लिए भी एक बड़ी क्षति है।
फराज नजर ‘चांद’ की शायरी तो उनकी याद दिलाएगी ही, अपनी सरलता और सादगी के लिए भी वे हमेशा याद आएंगे। उनकी शख्सियत साधारण जनता की तरह ही सहज, सरल और जीवटता से भरपूर थी। साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रकारिता को वे  सामाजिक-राजनीतिक बदलाव का बहुत ताकतवर जरिया समझते थे और वामपंथी आंदोलन से यह उम्मीद करते थे कि वह इसे ज्यादा मजबूत बनाए। उन्हें जब भी मौका मिला, तो नियमित रूप से अखबारों के लिए भी लेखन कार्य किया। हाल के दिनों में उन पर फालिज का आघात हुआ था और वे कोमा में चले गए थे। 
फराज नजर ‘चांद’ भाकपा और प्रलेस से जुड़े हुए थे। उनको जन संस्कृति मंच अपने एक ऐसे दोस्त लेखक के रूप में याद करता है, जिन्होंने अपनी रचनात्मक ऊर्जा के साथ ही साथ हमेशा अपने बहुमूल्य सुझावों से भी संगठन को समृद्ध किया। जनकवि भोला, जब तक जीवित थे, तब तक उनकी पान की दूकान पर अक्सर शाम में फराज साहब मिल जाते थे। आंखों में एक आत्मीय चमक और होठों पर प्यारी मुस्कान वाले फराज नजर ‘चांद’ बहुत याद आएंगे। खासकर जनकवि गोरख पांडेय की स्मृति में आरा हर साल आयोजित होने वाले नुक्कड़ काव्य गोष्ठी ‘कउड़ा’ में उनकी कमी बहुत खलेगी। वे हर आयोजन में शामिल होते थे, लेकिन ‘कउड़ा’ में खास तौर पर अपनी गजल के साथ मौजूद रहते थे। 
फराज नजर ‘चांद’ के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना जाहिर करते हुए हम जन संस्कृति मंच की ओर से उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि देते है। वे हमेशा हमारी स्मृतियों में रहेंगे। 
श्रद्धांजलि देने वालों  में जसम के राज्य अध्यक्ष रामनिहाल गुुंजन, कथाकार मधुकर सिंह, जनपथ के संपादक अनंत कुमार सिंह, कवि-आलोचक जितेद्र कुमार, कथाकार सुरेश कांटक, रंगकर्मी डाॅ. विंद्येश्वरी, सुधीर सुमन, कवि ओमप्रकाश मिश्र, कवि सुनील श्रीवास्तव, कवि सुमन कुमार सिंह, संस्कृतिकर्मी शमशाद प्रेम, चित्रकार राकेश दिवाकर, कवि सुनील चैधरी, आशुतोष पांडेय, रंगकर्मी अरुण प्रसाद, गायक राजू रंजन, रंगकर्मी अमित मेहता आदि प्रमुख हैं। 

Wednesday, April 16, 2014

प्रचार के अंतिम दिन माले ने अनेक गांवों में प्रचार जुलूस निकाला











दैनिक आज 
आरा में नौजवानों ने निकाला जुलूस
आरा के प्रबुद्ध नागरिकों ने की राजू यादव को विजयी बनाने की अपील 
आरा: 15 अप्रैल 2014
चुनाव प्रचार के आखिरी दिन आज भाकपा-माले कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने आरा संसदीय क्षेत्र के सैकड़ों गांवों और पंचायतों में अपने प्रत्याशी राजू यादव के समर्थन में झंडा-बैनर के साथ जुलूस निकाला और लोगों से भारी संख्या में निर्भीकता के साथ मतदान करने की अपील की। माले ने भाजपा के उम्मीदवार आरके सिंह द्वारा खुफिया विभाग और प्रशासन के साथ रिश्ते का गरीब व कमजोर वर्ग के मतदाताओं के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने की आशंकाओं से भी अपने आधार को सचेत किया है और उन तक संदेश पहुंचाया है कि वे भाजपाई साजिश के खिलाफ भारी पैमाने पर मतदान करें और अपनी राजनैतिक दावेदारी को सुनिश्चित करें। 
आज माले प्रत्याशी राजू यादव ने आरा कोर्ट में अधिवक्ताओं के बीच प्रचार अभियान चलाया। उनके साथ प्रोग्रेसिव एडवोकेट एसोसिएशन के अमित कुमार बंटी के अलावा दर्जनों अधिवक्ता प्रचार में शामिल थे। 
आरा शहर के मुख्य मार्गों पर आइसा महासचिव अभ्युदय, इनौस के उपाध्यक्ष असलम, माले नगर सचिव दिलराज प्रीतम, आइसा राज्य सचिव अजित कुशवाहा, सत्यदेव, रचना आदि के नेतृत्व में सैकड़ों युवाओं ने लाल झंडों और राजू यादव के समर्थन में बनाए गए बैनरों के साथ जोशीला जुलूस निकाला। छात्र-नौजवानों, किसान-मजदूरों, महिलाओं ने ललकारा है, आरा सीट हमारा है, आरा का सांसद कैसा हो
राष्ट्रीय सहारा 
यह भाजपा का मुखपत्र चुका अखबार जागरण है, जिसमें एक वाक्य की खबर है 
, राजू यादव जैसा हो आदि नारे लगे। माले के सारे कार्यकर्ता गांवों-मुहल्लों में जनता के बीच पैठ गए हैं। मतदाताओं को प्रलोभन देने वाले और उन पर दबाव बनाने वालों पर भी उनकी नजर रहेगी। गरीब-मेहनतकश-कमजोर वर्ग के लोग आजादी से अपना मतदान कर सकें, यह माले की कोशिश है।
आरा के 71 प्रबुद्ध नागरिकों ने भी राजू यादव को वोट देने की अपील की है। अपील करने वालों में कथाकार मधुकर सिंह, डाॅ. सुनीति प्रसाद, डाॅ. यूके चैधरी, प्रो. रामतवक्या सिंह, प्रो. वीरेंद्र कुमार सिंह,  प्रो. तुंगनाथ चैधरी, प्रो. अनुज रजक, प्रो. नजीर अख्तर,आलोचक रामनिहाल गुंजन, कथाकार अनंत कुमार सिंह, सुरेश कांटक, कवि जितेंद्र कुमार, बलभद्र, पत्रकार राजू नीरा, कवि सुनील श्रीवास्तव, सुनील चैधरी, आशुतोष पांडेय, जनमत के संपादक सुधीर सुमन, कवि सुमन कुमार सिंह, रंगकर्मी संजय कुमार पाल, राजू रंजन, अधिवक्ता सुरेंद्र प्रसाद भट्ट, कामेश्वर यादव, बबन यादव, राजेंद्र यादव, सुशील कुमार पंडित, ज्योति कलश, अमित कुमार बंटी, निर्मल राम, विमल यादव, ललन यादव, कामता यादव, आनंद वात्सयायन, संजय कुशवाहा, जनकवि कृष्ण कुमार निर्माेही, रंगकर्मी धनंजय, चित्रकार कमलेश कुंदन, राकेश दिवाकर, संजीव सिन्हा और मूर्तिकार ओमप्रकाश शामिल हैं। इस अपील के दस हजार पर्चे जनता के बीच वितरित किए गए हैं। 


मतदान का समय घटाना एक राजनीतिक साजिश है: का. कुणाल, राज्य सचिव, भाकपा-माले



मतदान का समय घटाने का निर्णय वापस लेने की मांग की माले ने
भाजपा के इशारे पर जिला प्रशासन ने गरीबों को मतदान से वंचित करने की साजिश की है: का. कुणाल

आरा: 15 अप्रैल 2014
जिला प्रशासन की अनुशंसा पर आरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन यहां के दो विधानसभाओं- अगिआंव विधानसभा और तरारी विधानसभा क्षेत्र में मतदान का समय दो घंटा कम किए जाने को भाकपा-माले के राज्य सचिव का. कुणाल ने गरीब मतदाताओं को मतदान से वंचित करने की भाजपाई साजिश करार दिया है। का. कुणाल ने कहा है कि यह निर्णय घोर आश्चर्यजनक और लोकतंत्रविरोधी है। तरारी और अगिआंव की जनता भारी संख्या में मतदान करके इस साजिश का करारा जवाब देगी। 
का. कुणाल ने कहा है कि माले प्रत्याशी के चुनाव अभिकर्ता ने यहां के जिला निर्वाचन पदाधिकारी सह जिलाधिकारी से इसके संदर्भ में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें क्षेत्र के बारे में जानकारी नहीं है, उन्हें किसी ने बताया कि ये क्षेत्र उग्रवाद प्रभावित हैं, इसलिए यहां मतदान का समय दो घंटा कम करने की अनुशंसा की गई। सवाल यह है कि अगर उन्हें इस क्षेत्र की जानकारी नहीं थी, तो उन्होंने पार्टियों के साथ इसके संदर्भ में बैठक क्यों नहीं की? यह बड़ी आबादी को मतदान से वंचित करने की राजनैतिक साजिश है। भोजपुर जिला प्रशासन ने चुनाव आयोग को भी गुमराह करने का काम किया है।
दैनिक हिंदुस्तान १६ अप्रैल 
का. कुणाल ने बताया है कि इस मामले में केन्द्रीय चुनाव आयोग और बिहार के मुख्य चुनाव पदाधिकारी के पास विरोध पत्र भेजा गया है और आरा आरा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के मुख्य चुनाव पर्यवेक्षक को भी इससे अवगत कराया गया है कि अगिआंव और तरारी विधानसभा क्षेत्र में कभी मतदान प्रक्रिया को बाधित करने की कोई घटना नहीं घटी है, कभी भी यहां मतदान कराने गए अधिकारियों या कर्मचारियों पर कोई हमला नहीं हुआ है। पिछले विधानसभा चुनाव में अगिआंव विधानसभा से भाजपा तथा तरारी विधानसभा से जद-यू के विधायक चुने गए हैं। फिर किस आधार पर इन विधानसभाओं को उग्रवाद प्रभावित बताकर मतदान का समय कम किया गया? क्या इन दोनों विधानसभाओं में प्रशासन सभी लोगों का मतदान सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त पोलिंग बूथों की व्यवस्था करेगा?
का. कुणाल ने कहा कि इन दोनों  विधानसभाओं में सामंती ताकतें गरीबों को वोट देने नहीं देती थीं। गरीबों ने लड़कर और शहादतें देकर यह अधिकार हासिल किया। अब सामंती ताकतें उन्हें वोट देने से रोक नहीं पा रही हैं, तो प्रशासन के जरिए रोकने की कोशिश कर रही हैं। जैसा कि सबको पता है कि भाजपा उम्मीदवार आर.के सिंह केंद्रीय गृह सचिव थे। लिहाजा नौकरशाही और खुफिया तंत्र से इनके गहरे रिश्ते हैं। उन्होंने इसी प्रभाव का इस्तेमाल करके गरीबों को वोट से वंचित करने की साजिश रची है।  
का. कुणाल ने कहा है कि एक ओर निर्वाचन आयोग के जरिए अधिक से अधिक लोगों के मतदान के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं, तो दूसरी ओर दो विधानसभाओं में मतदान का समय कम करके अनेक मतदाताओं को मतदान से वंचित करने की कोशिश की जा रही है। यह तो निष्पक्ष चुनाव कराए जाने की चुनाव आयोग की भावना का ही मजाक उड़ाने के समान है। यह पूरे भोजपुर के लिए भी भेदभावपूर्ण कार्रवाई है। 
का. कुणाल ने बताया कि माले ने केद्रीय निर्वाचन आयोग से अगिआंव और तरारी में मतदान का समय दो घंटा कम करने के निर्देश को वापस लेने की मांग की है। 

देश पर तानाशाही थोपने की साजिशों के खिलाफ भोजपुर लड़ाई का रास्ता दिखाएगा : का. दीपंकर

आरा में का. दीपंकर 
उम्र नहीं, बल्कि अपने समय के संकटों से लड़ने की हिम्मत और इच्छाशक्ति असल चीज़ है : का. दीपंकर भट्टाचार्य 
माले प्रत्याशी राजू यादव के समर्थन में का. दीपंकर की सभाएं 

आरा/गड़हनी/ अगिआंव बाजार/ तरारी
14 अप्रैल 2014
‘भोजपुर ने इतिहास के हर मोड़ पर रास्ता दिखाया है, इस वक्त मोदी के नेतृत्व में सामंती-सांप्रदायिक उन्माद और कारपोरेट लूट की ताकतें देश पर तानाशाही थोपने की जो साजिशें रच रही हैं, उसके खिलाफ भोजपुर ही फिर रास्ता दिखाएगा।’ भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने आज तरारी, अगिआंव बाजार, गड़हनी और आरा में माले प्रत्याशी राजू यादव के समर्थन में आयोजित चुनावी सभाओं को संबोधित करते हुए यह कहा। 
सहारा 
यह दैनिक हिंदुस्तान की कतरन है,
जो अपने को बिहार का नंबर-1
अखबार कहता है. 14 अप्रैल को चार जगह सभाएं हुईं,
जिसकी यह छोटी सी खबर है. फोटो नहीं छापा गया
का. दीपंकर ने कहा कि भाजपा-कांग्रेस की नीतियां इस देश के किसान-मजदूरों, छोटे दूकानदारों, आदिवासियों, महिलाओं, छात्र-नौजवानों सबके खिलाफ हैं। ये विकास के नाम पर विनाश में लगे हुए हैं। इस देश में जिंदा रहने के लिए नीतियों को बदलने की मजबूत लड़ाई लड़नी होगी, विकास की दिशा को गरीबों की ओर मोड़ना होगा। उन्होंने नीतीश कुमार पर भी कटाक्ष करते हुए कहा कि वे जनता से मेहनताना मांगते फिर रहे हैं, लेकिन उन्हें तो सड़क में गड्डों, फर्जी बिजली बिल, राशन-किरासन, मनरेगा घोटाला आदि के लिए जुर्माना भरना चाहिए। 
आरा सभा में माले प्रत्याशी राजू यादव 
का. दीपंकर ने विरोधी उम्मीदवारों के अनुभवी होने पर सवाल उठाते हुए कहा कि लोग बताते हैं कि अस्सी के दशक में भाजपा उम्मीदवार जब पटना के डीएम थे, तो उन्होंने आंदोलनकारी छात्रों पर जबर्दस्त लाठीचार्ज करवाया था। जब वे गृहसचिव रहे, तो जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने और कानून व्यवस्था को सुधारने के बजाए राजनीतिक साजिश के तहत निर्दोष नौजवानों को फर्जी मुकदमों में फंसाया गया। यहां तक कि जब अफजल को फांसी दी गई, तो इन्होंने अफजल के परिवार वालों को सूचना तक नहीं दी, जबकि अंग्रजों के शासन में भी इस हद तक संवेदनहीनता नहीं बरती जाती थी। 
जद-यू की उम्मीदवार बारे में उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल में वे क्षेत्र में गई ही नहीं, यही उनका अनुभव है। राजद उम्मीदवार के बारे में कहा कि लाल झंडा और जनता के आंदोलनों से गद्दारी करके वे राजद में गए, जब राजद को गर्दिश में देखा, तो वहां से जद-यू में चले गए, अब फिर राजद में लौटे हैं, लोगों का यही कहना है कि अब एक पार्टी भाजपा उनके लिए बची है, इनका कोई भरोसा नहीं है। कुर्सी के दलबदल का यह अनुभव भोजपुर की जनता के किस काम आएगा? 
आरा में चुनावी सभा 
का. दीपंकर ने कहा कि उम्र कोई मायने नहीं रखता, असल चीज है कि अपने समय के संकट से लड़ने की हिम्मत, ताकत और इच्छा शक्ति है या नहीं। यह भगत सिंह का मुल्क है, जिन्होंने इस देश की आजादी और जनता के राष्ट्र-निर्माण का सही रास्ता दिखाया और जो मात्र 23 साल में शहीद हो गए, जो हमारे राष्ट्रनायक हैं। जरूरत पड़ी तो इसी भोजपुर के कुंवर सिंह ने 80 साल की उम्र में भी अंगरेजों के खिलाफ आजादी की जंग छेड़ दी थी। यहीं 1942 मेें लसाढ़ी के किसानों ने आजादी के लिए लड़ते हुए शहादत दी थी, जिस गौरवशाली इतिहास को याद रखने के लिए का. रामनरेश राम ने विधायक बनने के बाद उन शहीदों का स्मारक बनवाया। आजादी के बाद भी जब दलितों-पिछड़ो, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और गरीबों का उनका संवैधानिक अधिकार नहीं मिला, तब का. जगदीश मास्टर, रामेश्वर यादव और रामनरेश राम ने सामंती धाक के खिलाफ लड़ाई शुरू की। फिर अस्सी के दशक में गरीबों के वोट के अधिकार के लिए जबर्दस्त लड़ाई भी इसी भोजपुर में हुई, जिसे रोकने के लिए सामंती ताकतों ने जनसंहार किए, पर लोगों ने वोट देने के अधिकार को हासिल किया। 90 के दशक में जब गरीबों की राजनीतिक दावेदारी को रोकने के लिए जनसंहारों का सिलसिला शुरू कर दिया गया, तब भी भोजपुर की संघर्षशील चेतना को कुचलना संभव नहीं हुआ। माले प्रत्याशी राजू यादव भोजपुर की इसी संघर्षशील चेतना और परंपरा के नुमाइंदे हैं। 
आरा सभा में वक्तागण
अंबेडकर जयंती के मौके पर आज उनको याद करते हुए का. दीपंकर ने कहा कि उन्होंने जो संविधान बनाया, वह संविधान और लोकतंत्र खतरे में है। भाजपा एक ओर अडानी, अंबानी, जिंदल, मित्तल, पोस्को जैसी देशी-विदेशी पूंजीपतियों और कंपनियों को  किसानों की खेती की जमीन, खनिज, तेल, गैस, जल, जंगल लूटने की छूट के लिए सरकार बनाना चाहती है, तो दूसरी ओर ये दंगाई ताकतें देश को बांटने में लगी हुई हैं। भाजपा ऐसी सरकार बनाना चाहती हैं, जहां किसान-मजदूरों के बजाए पूंजीपतियों की बात सुनी जाएगी। इस देश में आरएसएस, अंबानी-अडानी, अमेरिका का मोर्चा बना है। माले ने इस मोर्चे के खिलाफ किसान-मजदूरों, नौजवानों, मां-बहनों, गरीबों, तरक्कीपसंद, लोकतंत्र पसंद और इंसाफ में आस्था रखने वाले लोगों का मोर्चा बनाया है, आरा में यह मोर्चा भाजपा के खूनी मोर्चे पर भारी पड़ेगा। 
उन्होंने कहा कि भाजपा पूरे देश में साजिशें रच रही है। 23 मार्च की सुबह भगतसिंह की शहादत दिवस पर का. बुधराम पासवान का शव मिलने से पूरे भोजपुर में सन्नाटा था, उस रोज माले को अपने उम्मीदवार का नामांकन स्थगित करना पड़ा, लेकिन उसी रोज भाजपा का नामांकन हुआ। उन्होंने कहा कि साजिश सिर्फ माले के साथ ही नहीं हो रही, बल्कि एक दिन पहले पीरो में नौजवान कोचिंग संचालक अकबर खां की भी हत्या हुई। एक ओर गरीबों के मान-सम्मान व हक-अधिकार के लिए लड़ने वाले बुधराम पासवान थे, तो दूसरी ओर गरीब छात्रों को निःशुल्क शिक्षा देने और लड़कियों के साथ होने वाले छेड़छाड़ का विरोध करने वाले लोकप्रिय शिक्षक अकबर खान। दोनों राजनीतिक साजिशों के शिकार हुए। ऐसी ही अनेक साजिशों का नाम भाजपा और मोदी है। 
सभाओं को पूर्व सांसद रामअवधेश सिंह, माले केंद्रीय कमेटी सदस्य कृष्णदेव यादव, अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, माले प्रत्याशी राजू यादव ने भी संबोधित किया। तरारी में सभा की अध्यक्षता खेमस के जिला सचिव का. कामताप्रसाद सिंह और अगिआंव बाजार मे अध्यक्षता अखिल भारतीय किसान महासभा के जिला सचिव का. चंद्रदीप सिंह ने की। गड़हनी में का. रघुवर पासवान और आरा में दिलराज प्रीतम ने सभा का संचालन किया। 

जेल में हत्या की योजना बनना प्रशासनिक विफलता है: माले

यह बयान सिर्फ दैनिक आज में छप पाया.
एसपी के बयान से जनता की असुरक्षा बढ़ेगी: का. कुणाल 
अगर एसपी के पास सुराग है, तो वे असली हत्यारे को पकड़ें: का. कुणाल

आरा: 14 अप्रैल 2014 
भाकपा-माले के राज्य सचिव का. कुणाल ने का. बुधराम पासवान की हत्या के मामले में भोजपुर एसपी के खुलासे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि अगर जेल के भीतर भी हत्या की योजना बनाने की गुंजाइश होती है, तो यह बड़ी प्रशासनिक विफलता है। जैसा कि भाकपा-माले ने पहले ही कहा था कि का. बुधराम पासवान की हत्या एक राजनैतिक साजिश के तहत की गई है और इसमंे सांमती-सांप्रदायिक-अपराधी ताकतों का हाथ है, तो जहां से अपराधियों के पकड़े जाने की बात की जा रही है, उसी भैरोडिह गांव मेें बुधराम पासवान की हत्या के बाद रात मेें और सुबह में फायरिंग की गई थी। बयानबाजी के बजाए अगर प्रशासन के पास हत्या के मामले में कोई सुराग है, तो असली हत्यारे को पकड़े। जो अपराधी पकड़े गए हैं, उनके रणवीर सेना के साथ भी रिश्ते रहे हैं। इसके पहले रामनाथ राम की हत्या के मामले में इनके साथ मुन्ना राय नाम का रणवीर सेना का एक अपराधी भी नामजद है। 
का. कुणाल ने कहा है कि अभी तक पीरो के नौजवान कोचिंग संचालक अकबर खां के हत्यारे भी पकड़े नहीं गए हैं। एसपी ने जो बयान दिया है, उससे जनता में असुरक्षा बढ़ेगी। लोग यही समझेंगे कि अपराधियों के पकड़े और न पकड़े जाने का कोई मतलब ही नहीं है, वे जेल में बैठकर भी अपराध को अंजाम दे सकते हैं। खासकर चुनाव के समय तो इस तरह की बयानबाजी बिल्कुल उचित नहीं है, क्योंकि इससे लोगों में असुरक्षा और भय बढ़ेगा। 

Monday, April 14, 2014

राजू यादव को वोट देने से जनता की ताकत बढ़ेगी : का. दीपंकर

माले को दिया गया, एक-एक वोट जनता की जिंदगी की बेहतरी के लिए काम आएगा: का. दीपंकर भट्टाचार्य 
राजू यादव के समर्थन में माले महासचिव के सभाएं  


जोकटा/ अगिआंव/ उदवंतनगर/ बीबीगंज

जोकटा (सन्देश) में चुनावी सभा में का. दीपंकर 
राष्ट्रीय सहारा 
भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने 13 अप्रैल 2014 जोकटा, अगिआंव, उदवंतनगर और बीबीगंज में विशाल चुनावी जनसभाओं को संबोधित करते हुए कहा कि जनता के बुनियादी मुद्दों पर माले चुनाव लड़ रही है। माले का सांसद संसद में जाकर उन्हीं मुद्दों पर नीतियां बनाने के लिए संघर्ष करेंगे। माले को दिया गया, एक-एक वोट जनता की जिंदगी की बेहतरी के लिए काम आएगा। 
दैनिक हिंदुस्तान 
प्रभात खबर 
का. दीपंकर ने कहा कि मोदी को सामने करके एक ओर दंगाई-सांप्रदायिक ताकतें सत्ता हथियाना चाहती हैं, तो दूसरी ओर इन्हीं ताकतों के बल पर अंबानी, अडानी, जिंदल, मित्तल, पोस्को जैसे देशी-विदेशी पूंजीपति किसानों की खेती की जमीन, खनिज, तेल, गैस, जल, जंगल को हड़प लेना चाहते हैं। यह आरएसएस, अंबानी-अडानी आदि का मोर्चा है, जिसे अमरीका का आशीर्वाद प्राप्त है। माले ने इस मोर्चे के खिलाफ किसान-मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं और गरीबों का मोर्चा बनाया है, आरा में यह मोर्चा भाजपा के खूनी मोर्चे पर भारी पड़ेगा। राजू यादव के रूप में इंसाफ, बराबरी, विकास और मान-सम्मान की आवाज संसद में पहुंचेगी। उन्होंने याद दिलाया कि पिछले साल बिहार में हुंकार रैली और उसके बाद बम विस्फोट में मारे गए लोगों की अस्थियां घुमाने के जरिए सामंती-शक्तियों ने यहां के समाज को विभाजित करने की कोशिश की, पर किसानों, मजदूरों, गरीबों, नौजवानों, महिलाओं और लोकतंत्रपसंद लोगों के मोर्चे के बल पर ही माले ने सारे आतंक को तोड़ते हुए खबरदार रैली की और इनके मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया। 
भाजपा पर कटाक्ष करते हुए का. दीपंकर ने कहा कि यह एमपी का चुनाव हो रहा है, पर भाजपा ने इसे उलट कर पीएम का चुनाव बना दिया है। अभी जनता ने वोट भी नहीं दिया और भाजपा ने मोदी को प्रधानमंत्री बना दिया है, यह जनता का अपमान है। अभी तो सांसद चुनके आएंगे, उनमें जिसका बहुमत होगा वह प्रधानमंत्री बनाएगा, अगर बहुमत नहीं होगा तो गठबंधन बनेंगे और तब कोई प्रधानमंत्री बनेगा। इतना तय है कि राजू यादव संसद में पहुंचेंगे तो वे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनाए जाने के खिलाफ खड़े होंगे। वे सामाजिक न्याय, सबके विकास, महिलाओं की आजादी, छात्र-नौजवानों के लिए शिक्षा-रोजगार के लिए लड़ेंगे, जनता के जुझारू सिपाही के रूप में वे काम करेंगे। उनको वोट देने से जनता की खुद की ताकत बढ़ेगी। 
जोकटा की सभा में माले प्रत्याशी का. राजू यादव 
का. दीपंकर ने कहा कि जो लोग माले उम्मीदवार की उम्र और अनुभव पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें याद नहीं है कि यह भगत सिंह का मुल्क है, जिन्होंने इस देश की आजादी और जनता के राष्ट्र-निर्माण का सही रास्ता दिखाया और जो मात्र 23 साल में शहीद हो गए, जो हमारे राष्ट्रनायक हैं। उम्र और अनुभव से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि जनता पर जो संकट है, उससे लड़ने की हिम्मत है या नहीं। का. दीपंकर ने भाजपा उम्मीदवार पर हमला करते हुए कहा कि लोगों का कहना है कि वे जब पटना के डीएम थे, तो छात्रों के आंदोलन पर लाठियां चलाने का उनका अनुभव रहा है, वे जब गृहसचिव रहे, तो जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बजाए अपराधियों, माफियाओं, सांप्रदायिक ताकतों को छूट देने का काम किया, यही उनका अनुभव है। जद-यू की उम्मीदवार का अनुभव यह है कि पिछले पांच साल में वे क्षेत्र में गई ही नहीं। उन्होंने सवाल किया कि राजद के उम्मीदवार का पच्चीस सालों का जो अनुभव है, वह किस काम आएगा? लाल झंडा और जनता के आंदोलनों से गद्दारी करके वे राजद में गए, जब राजद को गर्दिश में देखा, तो वहां से जद-यू में चले गए, अब फिर राजद में लौटे हैं, अब एक पार्टी भाजपा उनके लिए बची है, लोगों का यही कहना है कि इनका कोई भरोसा नहीं है। 
का. दीपंकर ने उपेंद्र कुशवाहा, रामविलास पासवान पर यह आरोप लगाया कि इन लोगों ने भाजपा के खूनी चेहरे के लिए पर्दे का काम किया है। सत्रह साल तक यही काम नीतीश कुमार ने किया, इनका साथ देकर पूरे समाज को बांटा और गरीबों का वोट इन गरीब विरोधी सामंती-सांप्रदायिक उन्माद की ताकतों की झोली में डाल दिया। इसी कारण उन्हें पूरे बिहार में गरीबों का जबर्दस्त गुस्सा झेलना पड़ रहा है। 
का. राजाराम सिंह 
दैनिक जागरण 
दैनिक आज 
सभाओं में केंद्रीय कमेटी सदस्य का. केडी यादव ने कहा कि जगदीश मास्टर, रामेश्वर यादव और रामनरेश राम ने गरीबों की जिस राजनैतिक दावेदारी के लिए जो बेमिसाल संघर्ष किया, राजू यादव उसी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले हैं। अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का. राजाराम सिंह ने कहा कि आज खेत, खेती और किसान पर जो संकट है, जैसी महंगाई और बेरोजगारी है, उसके लिए जो नीतियां जिम्मेवार हैं, उनको बनाने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों दोषी हैं। इसलिए अगर संकट से निजात पाना है, तो एकमात्र उपाय यही है कि जनता उनको चुने जो संसद में नीतियों को बदलने के लिए संघर्ष करें। राजू यादव यही काम करेंगे। माले प्रत्याशी राजू यादव ने कहा कि अब तक वे जनता के जिन सवालों पर लड़ते रहे हैं, उन्हीं सवालों पर संसद के भीतर जोरदार संघर्ष चलाएंगे। भोजपुर के चैतरफा विकास के लिए ईमानदारी से काम करेंगे। सोन नहर के आधुनिकीकरण, सिंचाई, मनरेगा आदि योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करने  के साथ वे इस इलाके में मेडिकल काॅलेज और इंजीनियरिंग काॅलेज के निर्माण, महिलाओं की सुरक्षा, बेरोजगारी भत्ता आदि के लिए सांसद के तौर पर कोशिश करेंगे। 
जोकटा में सभा का संचालन माले के संदेश प्रखंड सचिव का. परशुराम सिंह ने किया तथा ललन यादव, विनोद यादव, आजाद यादव, भगीरथ यादव, जीतन चैधरी, विनोद यादव आदि ने भी लोगों को संबोधित किया।
अगिआंव में सभा की अध्यक्षता विमल यादव ने की और मुख्य वक्ताओं के अलावा इनौस के अध्यक्ष रवि राय और माले जिला सचिव का. जवाहरलाल सिंह ने भी सभा को संबोधित किया। उदवंतनगर में सभा की अध्यक्षता का. दीपा सिंह ने की और संचालन राजेश्वर राम ने किया। बीबीगंज में सभा की अध्यक्षता श्रवण पासवान ने की तथा संचालन अभय सिंह ने किया। सभा को का. सुदामा प्रसाद और का. क्यामुद्दीन ने भी संबोधित किया।