Tuesday, October 27, 2015

भोजपुर जिले के सातों विधान सभा सीटों के माले उम्मीदवारों का परिचय



सुदामा प्रसाद, तरारी विधानसभा

तरारी विधानसभा से माले के उम्मीदवार सुदामा प्रसाद ने नाट्य संस्था युवानीति से अपने सफर की शुरुआत की। उसी वक्त उनका भाकपा-माले से जुड़ाव हुआ। अस्सी के दशक के शुरुआती वर्षोंं में उन्हें आईपीएफ का जिला प्रवक्ता बनाया गया। किसान आंदोलनों का वह दौर था। जिले में विश्वविद्यालय, सोन नहर के आधुनिकीकरण, सहार अरवल पुल समेत जिले के समग्र विकास के लिए जो उस दौर में आंदोलन चला, उसके अगुआ नेताओं में सुदामा प्रसाद रहे। इनको फर्जी मुकदमों में जेल भी भेजा गया। एक जननेता के बतौर बेहद लोकप्रिय सुदामा प्रसाद ने आरा और जगदीशपुर विधानसभाओं से चुनाव लड़े। आरा विधानसभा चुनाव में बहुत कम वोटों के अंतर से इनकी हार हुई थी। पिछले डेढ़ दशक से सुदामा प्रसाद किसानों के सवालों पर लगातार संघर्षरत रहे हैं। फिलहाल वे अखिल भारतीय किसान सभा के बिहार राज्य के सचिव हैं। पिछले दिनों इन्होंने किसानों की धान की खरीद, सिंचाई और खरीदे गए धान की कीमत समेत कई मुद्दों को लेकर ये अनशन पर बैठे थे। खासकर तरारी विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न तबकों के सवालों पर इन्होंने आंदोलन किया है। 


मनोज मंजिल, अगियांव विधानसभा

तरारी प्रखंड के कपूर डिहरा में एक भूमिहीन परिवार में जन्मे मनोज कुमार उर्फ मनोज मंजिल 1997 में छात्र संगठन आइसा से जुड़े। इनके पिता पार्टी कार्यकर्ता हैं। इनकी मां खेतिहर मजदूर हैं। ट्यूशन पढ़ाकर इन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। छात्र-आंदोलनों में शिरकत के कारण पढ़ाई बीच-बीच में बाधित भी हुई। इन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की है। छात्र आंदोलन मंे ये तीन बार जेल गए। इन्होंने आइसा के जिला सचिव, प्रदेश सहसचिव की जिम्मेवारी निभाई। वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय को यूजीसी की मान्यता दिलाने के लिए और छात्रसंघ चुनाव के लिए इन्होंने आंदोलन किया। लाॅ कालेज में आंदोलन करके आरक्षण लागू करवाया। डाॅ. अंबेडकर आवासीय विद्यालय में आंदोलन के बल पर क्लास रूम का निर्माण करवाया। विश्वविद्यालय में दलित छात्रों के लिए स्पेशल कोचिंग की व्यवस्था इन्होंने करवाई। दलित छात्रावासों की जर्जर स्थिति को बदलने के लिए आंदोलनों का इन्होंने नेतृत्व किया। 2003-04 से मनोज मंजिल ने भाकपा-माले के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर काम करना शुरू किया। हाल के वर्षों में इन्होंने अगिआंव विधानसभा में बिजली, स्कूल, शिक्षा, राशन-किरासन, वृद्ध-विधवा-विकलांग पेंशन, गांवों के लिए पहुंच पथ, खाद की कालाबाजारी को रोकने और भूमिहीनों के लिए जमीन के सवाल पर जबर्दस्त आंदोलन संचालित किये। एक स्कूल की जमीन को दबंगों से मुक्त करवाया। स्कूल में शिक्षकों की व्यवस्था करवाई। खाद की कालाबाजारी के खिलाफ आंदोलन किया। इन्होंने शहीद साथी सतीश यादव के साथ मिलकर किसानों का लगभग चैंतीस हजार क्विंटल धान बिकवाया। आंदोलनों से जनता की मांग तो पूरी हुई पर प्रशासन ने हर बार इन पर फर्जी मुकदमा लाद दिया। जनता के सवालों पर लड़ते हुए ये प्रशासन के आतंक के सामने कभी नहीं दबते। इन पर अभी तेरह फर्जी मुकदमे हैं। अगिआंव इलाके के नौजवानों, किसानों, महिलाओं, मजदूरों और गरीबों के बीच ये बेहद लोकप्रिय हैं। 


चंद्रदीप सिंह, जगदीशपुर विधानसभा

जगदीशपुर विधानसभा के भाकपा-माले प्रत्याशी चंद्रदीप सिंह 1978 में पार्टी से जुड़े। राजपूत जाति से आने वाले चंद्रदीप सिंह अस्सी के दशक से ही भोजपुर के गरीब मेहनतकशों और किसानों के आंदोलन के लोकप्रिय नेता रहे हैं। वे बिहार प्रदेश किसान सभा की राज्य कमेटी के सदस्य रहे और फिर इसके राज्य उपाध्यक्ष बनाए गए। 1990 में उन्होंने आईपीएफ के उम्मीदवार के बतौर तत्कालीन पीरो विधानसभा से विजय हासिल की थी। 1995 और 2000 के विधानसभा चुनाव तथा 1996 के उपचुनाव में भी वे पीरो विधानसभा से भाकपा-माले के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े, लेकिन विजय हासिल नहीं कर पाए। 1996 में उन्हें 33000 वोट मिले। 

फिलहाल वे अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, बिहार के राज्य उपाध्यक्ष और भोजपुर के जिला सचिव हैं।




राजू यादव, संदेश विधानसभा

राजू यादव आइसा और इंकलाबी नौजवान सभा के पदाधिकारी रह चुके हैं। इन्हें छात्र-युवा आंदोलनों के नेतृत्व का अनुभव है। लगातार छात्र-युवाओं के सवालों पर संघर्ष करते रहे हैं। 2010 में ये बड़हरा विधानसभा से माले के उम्मीदवार थे। पिछले लोकसभा चुनाव में आरा संसदीय क्षेत्र से इन्होंने भाकपा-माले प्रत्याशी के बतौर चुनाव लड़ा और लगभग 1 लाख वोट ले आए। संदेश क्षेत्र में इनके कामकाज का केंद्रीकरण है। यहां किसानों की सिंचाई, धान की बिक्री, डीजल अनुदान, फसल क्षति मुआवजा आदि सवालों पर इन्होंने आंदोलनों का नेतृत्व किया है। पिछले दिनों सुदामा प्रसाद के साथ ये भी आरा में इन सवालों को लेकर आमरण अनशन पर बैठे थे। राजू यादव नौजवानों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। 



क्यामुद्दीन अंसारी, आरा विधानसभा

क्यामुद्दीन अंसारी आरा विधानसभा से माले प्रत्याशी हैं। हदियाबाद, गड़हनी, भोजपुर के एक गरीब भूमिहीन परिवार, जिसके पास मात्र एक कमरे का घर था, में जन्मे 43 वर्षीय क्यामुद्दीन अंसारी 1989 के आसपास भाकपा-माले आंदोलन से जुड़े। लोकसभा चुनाव में आईपीएफ उम्मीदवार रामेश्वर प्रसाद के चुनाव प्रचार में लगे। उस वक्त पूरे देश में घोर सांप्रदायिक उन्माद और हिंसा का माहौल था, इन्हें लगा कि आईपीएफ और भाकपा-माले ही सही सेकुलर पार्टी है। पहले ये छात्र संगठन एबीएसयू से जुड़े और 1990 में जब आइसा के सम्मेलन हुआ, तो उसमें शामिल हुए। 1990 में भाकपा-माले की सदस्यता के लिए आवेदन दिया और 1992 में पार्टी के सदस्य बन गए और एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर काम करना शुरू किया। 

1990 से 2000 तक इन्होंने आइसा में काम किया। 1995 में ये बिहार आइसा के राज्य अध्यक्ष चुने गए। इन्होंने चारा घोटाले के खिलाफ छात्र-युवाओं के बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया। शिक्षा और रोजगार के सवाल पर इन्होंने लड़ाई लड़ी। बिहार में केंद्रीय विश्वविद्यालय और नए विश्वविद्यालयों की मांग को लेकर हुए आंदोलन का इन्होंने नेतृत्व किया। उस आंदोलन के दबाव में ही बिहार में छह नए विश्वविद्यालय बने। छात्र-आंदोलन को सामंतवाद और सांप्रदायिकताविरोधी आंदोलनों से जोड़ने में इनकी अहम भूमिका रही। राजद के सामाजिक न्याय और सेकुलरिज्म के पाखंड का इन्होंने लगातार पर्दाफाश किया। समस्तीपुर और मधुबनी गोलीकांड हो या छात्र-युवाओं पर दमन के अन्य मामले ये उनके प्रतिरोध की अगली कतार में रहे। 

सन् 2000 के बाद पीरो, गड़हनी, सहार आदि प्रखंडों में पार्टी मोर्चे पर काम करते हुए गरीब-गुरबों के हक-अधिकार की लड़ाई लड़ी। पिछले चार वर्षों वे आरा मुफस्सिल प्रखंड के सचिव हैं। यहां उन्होंने बाढ़पीड़ितों के लिए राहत के सवाल पर बड़ी लड़ाई लड़ी। राशन, किरासन, बिजली, बीपीएल सूची में सुधार के लिए हुए आंदोलनों का नेतृत्व किया। महिला उत्पीड़न और बलात्कार की कई घटनाओं के खिलाफ उन्होंने लड़ाई लड़ी। अल्पसंख्यकों पर हुए अत्याचार की खिलाफत की और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वालों के खिलाफ संघर्ष की अगली कतार में रहे। 



ललन यादव, बड़हरा विधानसभा

61 वर्षीय ललन यादव भाकपा-माले से 1978 में जुड़े। इसके पहले 74 के छात्र आंदोलन में शामिल हुए थे, पर बहुत जल्दी से उससे इनका मोहभंग हो गया। उन्हें लगा कि संपूर्ण क्रांति वाले कांग्रेसी ढर्रा पर चल रहे हैं। इसके बाद ही ये भाकपा-माले से जुड़े। 1984 में पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। इन्होंने बिहार प्रदेश किसान सभा के मोर्चे पर काम करना शुरू कियाा। कभी भूमि आंदोलन, तो कभी सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष करने, तो कभी कर्मचारी आंदोलन में सड़क जाम करने के कारण प्रशासन ने इन पर मुकदमा किया। इन्हें छह बार जेल में डाला गया। 2005 में इन्होंने बड़हरा विधानसभा से चुनाव लड़ा था। पिछले विधानसभा चुनाव में ये बड़हरा विधानसभा चुनाव अभियान समिति के प्रभारी थे। बाढ़-सुखाड़, मनरेगा, बकाया मजदूरी और पर्चाधारियों की जमीन से संबंधित आंदोलनों के लिए इन्होंने लगातार संघर्ष किया है। 


वृंदानंद सिंह, शाहपुर विधानसभा 

वृंदानंद सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र संगठन एबीएसयू से की थी, जो आगे चलकर अखिल भारतीय स्तर पर आइसा बना। वृंदानंद पेशे से अधिवक्ता हैं। आम अवाम को न्याय दिलाने के लिए ये हमेशा तैयार रहते हैं। भाकपा-माले आंदोलन के प्रति गहरे तौर पर प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी हैं। ये शाहपुर क्षेत्र में सामाजिक न्याय और गरीब-मेहनतकशों के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं।

सम्मान-अधिकार के वास्ते, कामरेड रामनरेश राम के रास्ते


गरीबों-मजदूरों-किसानों की एकता और सांप्रदायिक भाईचारा ही कामरेड रामनरेश राम का संदेश 

कामरेड रामनरेश राम के रास्ते चलकर ही जनता को सम्मान और लोकतांत्रिक अधिकार हासिल होगा: का. दीपंकर

आरा समेत भोजपुर के कई प्रखंडों और पंचायतों में रामनरेश राम की याद में जुलूस निकला 

सहार में कामरेड दीपंकर जनसभा को संबोधित करते हुए 
(कामरेड रामनरेश राम की पाँचवी बरसी पर भोजपुर में दो विशाल जनसभाएं हुईं। संयोग से यह भोजपुर में चुनाव प्रचार का आखिरी दिन था। परिसीमन के बाद  जदयू संरक्षित एक अपराधी इस इलाके से जीत गया था, पर इस बार वह अपराधी लोजपा में चला गया है। परिसीमन के बाद दो हिस्से में बंट गए सहार विधान सभा के दोनों हिस्सों यानी तरारी और अगिआँव विधान सभा में इस बार माले प्रत्याशी सुदामा प्रसाद और मनोज मंजिल के प्रति जबर्दस्त जनसमर्थन दिख रहा है। इन दोनों जनसभाओं तक किसी चैनल के कैमरे नहीं पहुंचे। खुद लालू जी की सभा इस जनसैलाब के आगे बेहद फीकी थी। अखबार अब भी यहाँ माले को तीसरे नंबर पर दिखा रहे हैं। जबकि सच यह है कि माले यहाँ एक नंबर पर है। पेश है इन दोनों सभाओं में दिये गए भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य के भाषण का सार संक्षेप। साथ में अखबारों के कतरन और कुछ फोटो)
नारायणपुर/ सहार/ आरा/ अगिआंव बाजार : 26 अक्टूबर

भोजपुर में क्रांतिकारी वामपंथी आंदोलन के संस्थापक और सहार के पूर्व विधायक का. रामनरेश राम की पांचवी बरसी पर नारायणपुर और सहार में भाकपा-माले ने दो विशाल जनसभाएं की, जिनको संबोधित करते हुए भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि भोजपुर में गरीबों और किसान-मजदूरों की राजनीतिक दावेदारी और सामाजिक बदलाव लाने का काम का. रामनरेश राम ने किया। उन्होंने इन ताकतों की एकता और सांप्रदायिक भाईचारे का जो संदेश दिया, उसी रास्ते से ही देश खुशहाली की ओर बढ़ेगा।

नारायणपुर की सभा में कामरेड दीपंकर 
का. दीपंकर ने कहा कि एक ओर भाजपा है खेती की जमीन हड़पने और खेती को चौपट करने की नीति पर अमल कर रही है और उनका कृषि मंत्री आत्महत्या करने वाले किसानों का अपमान करता है, तो दूसरी ओर भाकपा-माले है, जो किसानों के खेतों में पानी, फसल की खरीद, डीजल, बीज, खाद अनुदान के लिए संघर्ष कर रही है। एक ओर आरएसएस-भाजपा की ओर से आरक्षण खत्म करने की बात की जाती है और उनका एक मंत्री जलाकर मार दिए गए दलित बच्चों की तुलना कुत्ते से करता है, जैसा कि खुद मोदी ने गुजरात जनसंहार के मृतकों की तुलना दुर्घटना में मारे गए पिल्ले से की थी, वहीं दूसरी ओर भाकपा-माले है, जिसने का. रामनरेश राम के नेतृत्व में दलितों-अकलियतों, गरीबों, महिलाओं के मान-सम्मान और बराबरी के अधिकार की लंबी लड़ाई लड़ी है। 
का. दीपंकर ने कहा कि देश में एक बड़बोला नेता प्रधानमंत्री बन गया है, परिवर्तन के नाम पर उसने गरीबों, किसानों, नौजवानों- सबको धोखा दिया है। खाद्य सुरक्षा, मनरेगा, शिक्षा में कटौती कर दी गई और पूरा बजट पूंजीपतियों के लिए खोल दिया गया। सरकार बनने के बाद मोदी ने देशी-विदेशी कंपनियों के लिए किसानों की जमीन छीनने का फरमान जारी किया, जिसे पूरे देश में किसानों और वामपंथी ताकतों ने खारिज करने पर मजबूर किया। उन्होंने कहा कि भाजपा-आरएसएस देश के सांप्रदायिक एकता को तोड़ रहे है। उन्होंने यही परिवर्तन लाया है कि वे गाय के नाम पर इंसान की हत्या कर रहे है। भाकपा-माले दंगा, लूट और नफरत की राजनीति करने वालों को कोई छूट नहीं दे सकती। मोदी सरकार कंपनियों और आरएसएस की कठपुतली है। महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और असुरक्षा के लिए यह सरकार जिम्मेवार तो है ही, यह निरंतर दलितों-अकलियतों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की साजिश कर रही है। इन साजिशों और जनता के जीने के अधिकार पर हमले का मुंहतोड़ जवाब भाकपा-माले देगी। देश की खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधनों नीलामी और साम्राज्यवाद की दलाली के कारण भाजपा के खिलाफ पूरे देश में आंदोलन का माहौल बन रहा है। किसान, मजदूर, श्रमिक, छात्र, लेखक-बुद्धिजीवी सब विरोध में खड़े हो रहे हैं। बिहार में भी इनका विरोध हो रहा है। भाकपा-माले किसी कीमत पर भाजपा की सरकार नहीं बनने देगी। 

का. दीपंकर ने महागठबंधन को निशाना बनाते हुए कहा कि पंद्रह साल तक लालू जी की सरकार रही और दस साल तक नीतीश कुमार की, इतने दिनों में इन लोगों ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया। क्या ये इतने दिनों में सोन नहर का आधुनिकीकरण नहीं कर सकते थे, क्या बंद नलकूपों को चालू नहीं किया जा सकता था? इन लोगों ने भूमिहीनों को आवास और खेती की जमीन उपलब्ध नहीं कराई। जहां भी जमीन मिली, वह का. रामनरेश राम के संघर्ष के रास्ते के जरिए ही मिली। उन्होंने किसानों और बंटाईदारों के सवालों पर ही संघर्ष से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी, जिस लड़ाई को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। वे चाहते थे कि किसान-मजदूर बड़ी एकता बनाकर सामंती-पूंजीवादी व्यवस्था को बुनियादी तौर पर बदल दें। जब वे विधायक बने तो उन्होंने 1942 की लड़ाई में शहीद किसानों के लिए स्मारक बनाने का काम किया।

प्रभात खबर 
का. दीपंकर ने कहा कि लालू जी कहते चलते हैं कि उन्होंने गरीबों को आवाज दी, यह गलत है। सच यह है कि गरीबों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। गरीबों को ताकत देने का काम तो का. रामनरेश राम, जगदीश मास्टर, रामेश्वर यादव, बूटन मुसहर समेत भाकपा-माले के कामरेडों ने किया। का. दीपंकर ने कहा कि लालू जी ने आडवाणी का रथ रोककर भाजपा को रोकने का दावा किया, लेकिन दरअसल उन्होंने माले को रोकने के लिए नरक की ताकतों से हाथ मिलाने का ऐलान किया। वे गरीबों को ऊपर देखने को कहा, लेकिन नीचे जनसंहार होते रहे। उन्होंने देश में टाडा खत्म होने के बावजूद माले नेता शाह चांद को टाडा के तहत जेल में बंद रखा, जहां अंततः पिछले साल उनकी मौत हो गई। उन्होंने बात की सामाजिक न्याय की, लेकिन दलितों, अकलियतों, किसानों-मजदूरों के साथ अन्याय ही किया। नीतीश कुमार ने उसी सिलसिले को आगे बढ़ाया और अमीरदास आयोग को भंग करके भाजपाइयों को बचाने का काम किया। सारे जनसंहारी छोड़ दिए गए। 

का. दीपंकर ने कहा कि नीतीश के शासन में हाल यह है कि आरा कोर्ट में बम विस्फोट करवाने वाला जेल से बाहर आ जा रहा है और बिजली, शिक्षा, सिंचाई के सवाल पर संघर्ष करने वाले मनोज मंजिल को जेल में डाल दिया जाता है। किसानों की धान खरीद और सिंचाई के सवाल पर जुझारू संघर्ष चलाने वाले सतीश यादव की हत्या हो जाती है और लालू-नीतीश की पार्टियां निंदा का बयान तक नहीं देती। 

का. दीपंकर ने कहा कि का. रामनरेश की परंपरा यह है कि चुनाव भी जनता के बुनियादी सवालों से संघर्ष से अलग नहीं है। तरारी और जगदीशपुर से माले के उम्मीदवार किसान आंदोलनों के नेता हैं, संदेश और अगिआंव के माले प्रत्याशी नौजवान सभा के नेता रहे हैं, आरा के माले प्रत्याशी पूर्व छात्र नेता रहे हैं। ये सारे नेता विजयी होंगे तो विधानसभा में किसानों, नौजवानों और छात्रों की आवाज को बुलंद करेंगे। वे का. रामनरेश राम की परंपरा को आगे बढ़ाएंगे। इनकी जीत से बिहार में वास्तविक बदलाव के संघर्ष को मजबूती मिलेगी। बिहार बदलेगा तो देश भी बदलेगा। 
दैनिक जागरण 
इन दोनों सभाओं को संबोधित करते हुए माले प्रत्याशी सुदामा प्रसाद ने कहा कि माले ने जो जनघोषणापत्र जारी किया है, उसे लागू करने के लिए पूरी ताकत लगा दी जाएगी। 

अगिआंव में संकल्प सभा को का. रवि राय और सुदामा प्रसाद ने भी संबोधित किया। संचालन उपेंद्र यादव ने किया। मंच पर शहीद सतीश यादव की पत्नी उषा यादव, का. मनोज मंजिल की पत्नी शीला, मीरा जी, का. स्वदेश भट्टाचार्य, का. रामजी राय, का. कुणाल भी मौजूद थे। 

सहार में का. रामकिशोर राय ने संकल्प सभा का संचालन किया। सभा को सिद्धनाथ राम, कामता प्रसाद सिंह ने संबोधित किया।

राष्ट्रीय सहारा 
आज अगिआंव बाजार में एक संकल्प सभा हुई, जिसे अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव का. अरुण सिंह और माले प्रत्याशी चंद्रदीप सिंह ने संबोधित किया। आरा शहर समेत जिले के कई पंचायतों में का. रामनरेश राम को याद किया गया और उनकी तस्वीरों के साथ जुलूस निकाला गया। 


Sunday, October 25, 2015

भारतीय क्रांति के नायक का. रामनरेश राम

(जन संस्कृति मंच के महासचिव प्रणय कृष्ण ने 2010 में कामरेड रामनरेश राम की अंतिम यात्रा में शामिल होने के बाद यह श्रद्धांजलि लेख लिखा था। आज कामरेड रामनरेश जी यानी पारस जी की पाँचवी बरसी है। भोजपुर की क्रांतिकारी जनता उन्हें याद कर रही है। इस मौके पर पेश है यह श्रद्धांजलि लेख, जो भारतीय क्रांति में उनकी ऐतिहासिक भूमिका का भी आकलन करता है )


आरा से एकवारी के लिए मोटरसाइकिल, चौपहियों से हजारों साथी का. रामनरेश राम की अंतिम यात्रा का आरंभ कर चुके थे। हर एकाध कि.मि. पर सैकड़ों लोग, शोकार्त्त किन्तु गगनभेदी नारों के साथ काफिले को रोक लेते। आंख भर देखते उनका निश्चल शरीर, जैसे कभी पहले उन्हें नहीं देखा हो। उन्हें फूल चढाते, अच्छी खासी तादाद में लोग सायकिल से लेकर मोटरसाइकिलों तक पर लाल झण्डा बांधे काफिले के साथ हो लेते। बहुत से लोग दौड़ते हुए उस वाहन के नज़दीक पहुंचते जिसपर वे शांत लेटे थे, कि कहीं आखीरी बार देखने से चूक न जाएं- आबाल-वृद्ध, महिलाएं। काफिला चले तो भी कुछ दूर तक, अनेक लोग दौड़ते चलते सामर्थ्य भर। याद आने लगे ऐसे ही दृश्य जब कामरेड वी.एम. की अंतिम यात्रा लेकर साथी चले थे, बनारस से आरा। इसी तरह भभुआ से आरा तक हर कुछ कि.मी. पर रुकते, रुद्ध-कंठ से नारे लगते, काफिले के साथ सामर्थ्य भर दौड़ते लोग। आरा से एकवारी तक अनेक जगह लोगों ने यात्रा पहुंचने की तैयारी में जनसभाएं शुरू कर रखी थीं। 

पारस जी ने गोरेे अंग्रेजों से लडते हुए अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। बाद को काले अंग्रेजों से अनथक संघर्ष करते उनका जीवन जारी रहा अंत तक। लगता है जैसे उन्हें लंबा जीवन मिला ही इसलिए कि किसी एक व्यक्ति के जीवन में हमारी क्रांतिकारी धारा की पूरी आनुवांशिकी, उसका प्रचण्ड शौर्य और अपार धैर्य, धक्कों के गहन शोक और बार-बार पुनर्नवा शक्ति की अविराम साधना, प्रतिरोध का सौंदर्य और उत्सर्ग का संगीत खुद को झलका सकें। बेशक, यह लंबा जीवन उन्होंने मौत से आंखें मिलाकर, उससे पंजा लडाकर जनता के लिए हासिल किया था. वह उन्हें सेंत में नहीं मिला था।

1857 के राष्ट्रीय विद्रोह से लेकर नक्सलबाड़ी की विरासत की जन-चेतना के अखंड प्रवाह का सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण है शाहाबाद की धरती और उसका प्रतिनिधि आख्यान है रामनरेश राम का जीवन-चरित्र। पारस जी का जीवन जनता के क्रांतिकारी आंदोलन की व्यापकता और गहराई, दोनों को प्रतीकित करता है। व्यापकता सिर्फ वर्तमान के भौगोलिक विस्तार में ही नहीं होती, वह विरासत के ऐतिहासिक काल-विस्तार में भी होती है. जो लोग महज पहले अर्थ में व्यापकता को देखते हैं, वे चाहते हैं कि हम अपने इतिहास को, अपनी पहचान को भूल जाएं। वे गहराई से काटकर व्यापकता को देखते हैं, इसलिए अधूरा और असंगत देखते हैं। सिर्फ पत्तियां गिनते हैं, जड की गहराई और तने की मुटाई नहीं देखते जहां से पत्तियों को भी जीवन-द्रव्य आता है। पारस जी का जीवन अपना इतिहास और अपनी पहचान भूलने के विरुद्ध, उससे विश्वासघात के विरुद्ध, एक विराट संदेश है। देश के कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास में भोजपुर इस बात की भी मिसाल रहा कि कैसे जातिगत-वर्णगत शोषण का अंत भी वर्ग-संघर्ष के रास्ते ही संभव है, जब तक कृषि-क्रांति की धुरी पर आधारित भारत की जनवादी क्रांति का रास्ता न अपनाया जाएगा, भूमि-संबंध आमूलचूल नही बदले जाएंगे, तब तक छुआछूत और भयानक जातिगत और लैंगिक असमानता के खात्मे, वर्ण-व्यवस्था के खात्मे की लडाई भी नहीं हो पाएगी। आज से चार दशक पहले ही कामरेड रामनरेश राम और उनके साथियों के नेतृत्व में भोजपुर की जनता ने इस रास्ते को अंगीकार किया था। सामंती, जातिगत शोषण से निचली समझी जानेवाली जातियों की मुक्ति उन जातियों से आनेवाले मुट्ठी भर नवधनिक और दबंग प्रतिनिधियों द्वारा ज़मींदार-पूंजीपति राजसत्ता का हिस्सा बन जाने से नहीं हो सकेगी। कामरेड रामनरेश राम के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने यह बारंबार साबित किया कि ज़मीन, मज़दूरी और सामाजिक मान-सम्मान एक ही समेकित लडाई है, अलग-अलग नहीं। का. रामनरेश राम का राजनीतिक जीवन इस बात की भी मिसाल है कि क्रांतिकारी विपक्ष का निर्माण संसदीय और कानूनी निकायों में भी जन-आंदोलनों और वर्ग-संघर्ष के बूते ही होता है, अलग से नहीं, कि क्रांतिकारी विपक्ष मात्रा संसदीय दायरे की चीज नही है। 

जब सोन किनारे की अंतिम संकल्प सभा में महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने मंच से कहा कि, ‘सत्तर के दशक में जिन नेताओं को हमने खोया, उन्हें इस तरह से विदाई नहीं दे पाए थे', तो वहां हजारों की तादाद में जुटे लोगों में बहुतों की ही आंखें बरबस ही भर आई थीं। धीरे-धीरे सूर्य भी आकाश से विदा ले रहा था, सोन की रेती पर हजारों मेहनतकश पांव अपने निशान बना रहे थे, कंधें पर सैकड़ों गमछे कल, आज और कल के आंसुओं और पसीने का सोख्ता बने लहरा रहे थे, सैकड़ों लाल झंडे बल्लियों और लाठियों पर गर्व से सर उठाए आगे की चुनौतियों से निबटने की तैयारी का उद्घोष कर रहे थे। न जाने कितनी मां-बहनें भी परंपरा को धता बताते हुए रेती में उतर पडी थीं। आखिर ये और किसी की नहीं उनके नायक, भारतीय क्रांति के नायक का. रामनरेश राम की अंतिम विदा की घड़ी थी।