Tuesday, October 27, 2015

भोजपुर जिले के सातों विधान सभा सीटों के माले उम्मीदवारों का परिचय



सुदामा प्रसाद, तरारी विधानसभा

तरारी विधानसभा से माले के उम्मीदवार सुदामा प्रसाद ने नाट्य संस्था युवानीति से अपने सफर की शुरुआत की। उसी वक्त उनका भाकपा-माले से जुड़ाव हुआ। अस्सी के दशक के शुरुआती वर्षोंं में उन्हें आईपीएफ का जिला प्रवक्ता बनाया गया। किसान आंदोलनों का वह दौर था। जिले में विश्वविद्यालय, सोन नहर के आधुनिकीकरण, सहार अरवल पुल समेत जिले के समग्र विकास के लिए जो उस दौर में आंदोलन चला, उसके अगुआ नेताओं में सुदामा प्रसाद रहे। इनको फर्जी मुकदमों में जेल भी भेजा गया। एक जननेता के बतौर बेहद लोकप्रिय सुदामा प्रसाद ने आरा और जगदीशपुर विधानसभाओं से चुनाव लड़े। आरा विधानसभा चुनाव में बहुत कम वोटों के अंतर से इनकी हार हुई थी। पिछले डेढ़ दशक से सुदामा प्रसाद किसानों के सवालों पर लगातार संघर्षरत रहे हैं। फिलहाल वे अखिल भारतीय किसान सभा के बिहार राज्य के सचिव हैं। पिछले दिनों इन्होंने किसानों की धान की खरीद, सिंचाई और खरीदे गए धान की कीमत समेत कई मुद्दों को लेकर ये अनशन पर बैठे थे। खासकर तरारी विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न तबकों के सवालों पर इन्होंने आंदोलन किया है। 


मनोज मंजिल, अगियांव विधानसभा

तरारी प्रखंड के कपूर डिहरा में एक भूमिहीन परिवार में जन्मे मनोज कुमार उर्फ मनोज मंजिल 1997 में छात्र संगठन आइसा से जुड़े। इनके पिता पार्टी कार्यकर्ता हैं। इनकी मां खेतिहर मजदूर हैं। ट्यूशन पढ़ाकर इन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। छात्र-आंदोलनों में शिरकत के कारण पढ़ाई बीच-बीच में बाधित भी हुई। इन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की है। छात्र आंदोलन मंे ये तीन बार जेल गए। इन्होंने आइसा के जिला सचिव, प्रदेश सहसचिव की जिम्मेवारी निभाई। वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय को यूजीसी की मान्यता दिलाने के लिए और छात्रसंघ चुनाव के लिए इन्होंने आंदोलन किया। लाॅ कालेज में आंदोलन करके आरक्षण लागू करवाया। डाॅ. अंबेडकर आवासीय विद्यालय में आंदोलन के बल पर क्लास रूम का निर्माण करवाया। विश्वविद्यालय में दलित छात्रों के लिए स्पेशल कोचिंग की व्यवस्था इन्होंने करवाई। दलित छात्रावासों की जर्जर स्थिति को बदलने के लिए आंदोलनों का इन्होंने नेतृत्व किया। 2003-04 से मनोज मंजिल ने भाकपा-माले के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर काम करना शुरू किया। हाल के वर्षों में इन्होंने अगिआंव विधानसभा में बिजली, स्कूल, शिक्षा, राशन-किरासन, वृद्ध-विधवा-विकलांग पेंशन, गांवों के लिए पहुंच पथ, खाद की कालाबाजारी को रोकने और भूमिहीनों के लिए जमीन के सवाल पर जबर्दस्त आंदोलन संचालित किये। एक स्कूल की जमीन को दबंगों से मुक्त करवाया। स्कूल में शिक्षकों की व्यवस्था करवाई। खाद की कालाबाजारी के खिलाफ आंदोलन किया। इन्होंने शहीद साथी सतीश यादव के साथ मिलकर किसानों का लगभग चैंतीस हजार क्विंटल धान बिकवाया। आंदोलनों से जनता की मांग तो पूरी हुई पर प्रशासन ने हर बार इन पर फर्जी मुकदमा लाद दिया। जनता के सवालों पर लड़ते हुए ये प्रशासन के आतंक के सामने कभी नहीं दबते। इन पर अभी तेरह फर्जी मुकदमे हैं। अगिआंव इलाके के नौजवानों, किसानों, महिलाओं, मजदूरों और गरीबों के बीच ये बेहद लोकप्रिय हैं। 


चंद्रदीप सिंह, जगदीशपुर विधानसभा

जगदीशपुर विधानसभा के भाकपा-माले प्रत्याशी चंद्रदीप सिंह 1978 में पार्टी से जुड़े। राजपूत जाति से आने वाले चंद्रदीप सिंह अस्सी के दशक से ही भोजपुर के गरीब मेहनतकशों और किसानों के आंदोलन के लोकप्रिय नेता रहे हैं। वे बिहार प्रदेश किसान सभा की राज्य कमेटी के सदस्य रहे और फिर इसके राज्य उपाध्यक्ष बनाए गए। 1990 में उन्होंने आईपीएफ के उम्मीदवार के बतौर तत्कालीन पीरो विधानसभा से विजय हासिल की थी। 1995 और 2000 के विधानसभा चुनाव तथा 1996 के उपचुनाव में भी वे पीरो विधानसभा से भाकपा-माले के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े, लेकिन विजय हासिल नहीं कर पाए। 1996 में उन्हें 33000 वोट मिले। 

फिलहाल वे अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, बिहार के राज्य उपाध्यक्ष और भोजपुर के जिला सचिव हैं।




राजू यादव, संदेश विधानसभा

राजू यादव आइसा और इंकलाबी नौजवान सभा के पदाधिकारी रह चुके हैं। इन्हें छात्र-युवा आंदोलनों के नेतृत्व का अनुभव है। लगातार छात्र-युवाओं के सवालों पर संघर्ष करते रहे हैं। 2010 में ये बड़हरा विधानसभा से माले के उम्मीदवार थे। पिछले लोकसभा चुनाव में आरा संसदीय क्षेत्र से इन्होंने भाकपा-माले प्रत्याशी के बतौर चुनाव लड़ा और लगभग 1 लाख वोट ले आए। संदेश क्षेत्र में इनके कामकाज का केंद्रीकरण है। यहां किसानों की सिंचाई, धान की बिक्री, डीजल अनुदान, फसल क्षति मुआवजा आदि सवालों पर इन्होंने आंदोलनों का नेतृत्व किया है। पिछले दिनों सुदामा प्रसाद के साथ ये भी आरा में इन सवालों को लेकर आमरण अनशन पर बैठे थे। राजू यादव नौजवानों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। 



क्यामुद्दीन अंसारी, आरा विधानसभा

क्यामुद्दीन अंसारी आरा विधानसभा से माले प्रत्याशी हैं। हदियाबाद, गड़हनी, भोजपुर के एक गरीब भूमिहीन परिवार, जिसके पास मात्र एक कमरे का घर था, में जन्मे 43 वर्षीय क्यामुद्दीन अंसारी 1989 के आसपास भाकपा-माले आंदोलन से जुड़े। लोकसभा चुनाव में आईपीएफ उम्मीदवार रामेश्वर प्रसाद के चुनाव प्रचार में लगे। उस वक्त पूरे देश में घोर सांप्रदायिक उन्माद और हिंसा का माहौल था, इन्हें लगा कि आईपीएफ और भाकपा-माले ही सही सेकुलर पार्टी है। पहले ये छात्र संगठन एबीएसयू से जुड़े और 1990 में जब आइसा के सम्मेलन हुआ, तो उसमें शामिल हुए। 1990 में भाकपा-माले की सदस्यता के लिए आवेदन दिया और 1992 में पार्टी के सदस्य बन गए और एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर काम करना शुरू किया। 

1990 से 2000 तक इन्होंने आइसा में काम किया। 1995 में ये बिहार आइसा के राज्य अध्यक्ष चुने गए। इन्होंने चारा घोटाले के खिलाफ छात्र-युवाओं के बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया। शिक्षा और रोजगार के सवाल पर इन्होंने लड़ाई लड़ी। बिहार में केंद्रीय विश्वविद्यालय और नए विश्वविद्यालयों की मांग को लेकर हुए आंदोलन का इन्होंने नेतृत्व किया। उस आंदोलन के दबाव में ही बिहार में छह नए विश्वविद्यालय बने। छात्र-आंदोलन को सामंतवाद और सांप्रदायिकताविरोधी आंदोलनों से जोड़ने में इनकी अहम भूमिका रही। राजद के सामाजिक न्याय और सेकुलरिज्म के पाखंड का इन्होंने लगातार पर्दाफाश किया। समस्तीपुर और मधुबनी गोलीकांड हो या छात्र-युवाओं पर दमन के अन्य मामले ये उनके प्रतिरोध की अगली कतार में रहे। 

सन् 2000 के बाद पीरो, गड़हनी, सहार आदि प्रखंडों में पार्टी मोर्चे पर काम करते हुए गरीब-गुरबों के हक-अधिकार की लड़ाई लड़ी। पिछले चार वर्षों वे आरा मुफस्सिल प्रखंड के सचिव हैं। यहां उन्होंने बाढ़पीड़ितों के लिए राहत के सवाल पर बड़ी लड़ाई लड़ी। राशन, किरासन, बिजली, बीपीएल सूची में सुधार के लिए हुए आंदोलनों का नेतृत्व किया। महिला उत्पीड़न और बलात्कार की कई घटनाओं के खिलाफ उन्होंने लड़ाई लड़ी। अल्पसंख्यकों पर हुए अत्याचार की खिलाफत की और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वालों के खिलाफ संघर्ष की अगली कतार में रहे। 



ललन यादव, बड़हरा विधानसभा

61 वर्षीय ललन यादव भाकपा-माले से 1978 में जुड़े। इसके पहले 74 के छात्र आंदोलन में शामिल हुए थे, पर बहुत जल्दी से उससे इनका मोहभंग हो गया। उन्हें लगा कि संपूर्ण क्रांति वाले कांग्रेसी ढर्रा पर चल रहे हैं। इसके बाद ही ये भाकपा-माले से जुड़े। 1984 में पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। इन्होंने बिहार प्रदेश किसान सभा के मोर्चे पर काम करना शुरू कियाा। कभी भूमि आंदोलन, तो कभी सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष करने, तो कभी कर्मचारी आंदोलन में सड़क जाम करने के कारण प्रशासन ने इन पर मुकदमा किया। इन्हें छह बार जेल में डाला गया। 2005 में इन्होंने बड़हरा विधानसभा से चुनाव लड़ा था। पिछले विधानसभा चुनाव में ये बड़हरा विधानसभा चुनाव अभियान समिति के प्रभारी थे। बाढ़-सुखाड़, मनरेगा, बकाया मजदूरी और पर्चाधारियों की जमीन से संबंधित आंदोलनों के लिए इन्होंने लगातार संघर्ष किया है। 


वृंदानंद सिंह, शाहपुर विधानसभा 

वृंदानंद सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र संगठन एबीएसयू से की थी, जो आगे चलकर अखिल भारतीय स्तर पर आइसा बना। वृंदानंद पेशे से अधिवक्ता हैं। आम अवाम को न्याय दिलाने के लिए ये हमेशा तैयार रहते हैं। भाकपा-माले आंदोलन के प्रति गहरे तौर पर प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी हैं। ये शाहपुर क्षेत्र में सामाजिक न्याय और गरीब-मेहनतकशों के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं।

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