Monday, September 21, 2015

आरा में ‘एजेंडा 2015 : बिहार में वामपंथी विकल्प’ कन्वेन्शन आयोजित हुआ


प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच की ओर से 20 सितंबर रेडक्राॅस सभागार, आरा में आयोजित कन्वेंशन ‘एजेंडा 2015: बिहार में वामपंथी विकल्प’ में लेखक, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों ने भोजपुर जिले के तमाम सीटों से भाकपा-माले के उम्मीदवारों और पूरे शाहाबाद इलाके में वामपंथी उम्मीदवारों के समर्थन की घोषणा की।

कवि सुनील चौधरी ने कन्वेंशन के दृष्टि पत्र का पाठ किया। अध्यक्षता रामनिहाल गुंजन, डाॅ. नीरज सिंह, प्रो. रवींद्रनाथ राय और जितेंद्र कुमार ने संयुक्त रूप से की। संचालन जसम, बिहार के राज्य सचिव सुधीर सुमन ने किया। 

कन्वेंशन को संबोधित करते हुए जनवादी लेखक संघ, बिहार के अध्यक्ष डाॅ. नीरज सिंह ने कहा कि केंद्र और राज्य में जो सरकारें हैं, उन्होंने जनतंत्र के मायने बदल दिए हैं। जनाधिकारों पर ऐसी खुली चोट पहले कभी नहीं हो रही थी। नीतीश कुमार भी मोदी की तरह ही तानाशाह हैं। ये छद्म राष्ट्रवादी और छद्म सेकुलर गठबंधन एक-दूसरे को मुकाबले में बता रहे हैं, पर ये दोनों देश को बेचने को तैयार बैठे हैं। उन्होंने कहा कि प्रगतिशील-जनवादी साहित्यकार पिछले पच्चीस साल से एक मकसद और लक्ष्य के साथ सांप्रदायिक आंधी, सामंती उत्पीड़न और कारपोरेटपरस्ती के खिलाफ सृजनरत रहे हैं। आज वामपंथी दल भी एकजुट हुए हैं, जो यथास्थितिवादी और पूंजीवादी रास्ते के खिलाफ संघर्ष के लिहाज से बेहद उम्मीद भरी स्थिति है। आशा की यह किरण जरूर मशाल बनेगी। 

प्रगतिशील लेखक संघ, बिहार के महासचिव प्रो. रवींद्रनाथ राय ने कहा कि अमनपसंद, इंसानियतपसंद लोगों को वामपंथी विकल्प के साथ एकजुट होना चाहिए। उन्होंने जनपक्षधर मीडिया के निर्माण पर भी जोर दिया।

जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वरिष्ठ आलोचक रामनिहाल गुंजन ने मुक्तिबोध के हवाले से कहा कि मुक्ति कभी अकेले में नहीं मिलती, अगर वो है तो सबके साथ ही। उन्होंने कहा कि आज वामपंथ ही एकमात्र विकल्प है। 

जसम के राष्ट्रीय सहसचिव कवि जितेंद्र कुमार ने कहा कि वामपंथ ही वह रास्ता है, जिससे इस देश की बुनियादी समस्याओं का समाधान संभव है। इस चुनाव में वामपंथ के लिए बेहद अच्छी परिस्थिति है।

सीपीआई-एम के वरिष्ठ नेता रामप्रभाव मिश्र ने कहा कि विकल्प जनता के संघर्ष से ही निर्मित होगा।

हिरावल के संयोजक रंगकर्मी-गायक संतोष झा ने कहा कि कन्वेंशन का दृष्टिपत्र बताता है कि लड़ाई सिर्फ चुनाव तक महदूद नहीं है। लेकिन फिलहाल यह जरूरी है कि जिन ताकतों के खिलाफ लड़ना है, उनके खिलाफ प्रचार में उतरा जाए, वामपंथी विकल्प के पक्ष में पूरी ताकत से लगा जाए। महागठबंधन में शामिल दलों का भी शिक्षा और संस्कृति और जनता के बुनियादी मुद्दों के प्रति बहुत खराब रिकार्ड रहा है, भाजपा के रोकने के नाम पर महागठबंधन का पक्ष नहीं लिया जा सकता। इन दोनों गठबंधनों से मुक्ति के बगैर बिहार का भविष्य बेहतर नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि आरएसएस की गुंडावाहिनियों से आने वाले समय में लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों और इंसानी मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध व्यक्तियों को और भी बड़ी लड़ाई लड़ने को तैयार रहना होगा। 

इंसाफ मंच के जाकिर हुसैन ने कहा कि जो आजादी की लड़ाई में शामिल नहीं थे, वे आज सांप्रदायिक उन्माद फैला रहे हैं और ‘देशभक्ति’ का प्रमाणपत्र बांट रहे हैं। लालू बिहार में भाजपा को रोकने का दावा करते रहे, पर उन्होंने जिन सामाजिक शक्तियों को बढ़ावा दिया, उनके कंधे पर सवार होकर वह बिहार में आ गई, तो अब उसे भगाने का झांसा जनता को दे रहे हैं। अगर लालू और नीतीश एक नंबर के सेकुलर हैं तो उन्हें जवाब देना होगा कि भागलपुर दंगों के पीड़ितों को न्याय क्यों नहीं दिया। आतंकवाद के नाम पर साईकिल बनाने वाले से लेकर डाॅक्टरी की पढ़ाई करने वाले बेगुनाह नौजवानों को एनआईए ने उठाया, नीतीश ने इसका विरोध क्यों नहीं किया? क्यों नहीं कहा कि बिहार में एनआईए की जरूरत नहीं है? 

बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ- गोप गुट के नेता अखिलेश ने कहा कि समान शिक्षा प्रणाली और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन सिर्फ वामपंथी दलों ने किया है, शिक्षकों के आंदोलनों को उनका साथ मिला है, इस कारण भी उनका खुलकर समर्थन किया जाना चाहिए। 

आइसा नेता रचना सिंह ने शिक्षा और संस्कृति के सांप्रदायीकरण और निजीकरण की चर्चा की। वीमेंस काॅलेज में लड़कियों से छेड़खानी के बाद भड़के आंदोलन पर बिहार सरकार की चुप्पी पर सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि बिहार में शिक्षा और स्त्रियों की आजादी और सुरक्षा की स्थिति बहुत ही खराब है और इसके लिए नीतीश कुमार की सरकार पूरी तरह जिम्मेवार है। मीडिया द्वारा मोदी और नीतीश के चेहरे को चुनाव के केंद्र बनाने की आलोचना करते हुए प्रगतिशील व धर्मनिरपेक्ष शिक्षा, स्त्रियों के सम्मान, आजादी और सुरक्षा के लिए उन्होंने वाम दिशा में आगे बढ़ने की अपील की। 

कवि सुनील श्रीवास्तव ने कहा कि पूंजीवाद चकाचौंध पैदा करता है। वह धोखा और तिलिस्म फैलाता है। कारपोरेट हमारे सामने राजनीतिक विकल्प भी फेंकता है। इन्हीं विकल्पों के बीच चुनाव के कारण सरकारों का चरित्र नहीं बदल रहा है। इनके खिलाफ जनता के सही विकल्प के निर्माण में लगी शक्तियों को वैकल्पिक प्रचार तंत्र को भी मजबूत करना होगा।

शायर इम्तयाज अहमद दानिश ने कहा कि अल्पसंख्यकों के नफ्सियात (मनोविज्ञान) को समझना जरूरी है। दक्षिणपंथी पार्टियां उनकी नफ्सियाती कमजोरियों से फायदा उठाती हैं। पिछले चुनाव में जो दक्षिणपंथी पार्टी सत्ता में आई और अब जो आवैसी सामने आए हैं, वे दोनों इसी के उदाहरण हैं। 

कथाकार अनंत कुमार सिंह ने महाराष्ट्र के भाजपा सरकार के एक फरमान की चर्चा करते हुए कहा कि अब तो विधायक, मंत्री के खिलाफ बोलने पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने का भय दिखाया जा रहा है। ऐसे लोगों को जनता क्यों चुने? उन्होंने कहा कि वामपंथी विकल्प होने से अब मतदाताओं के सामने नागनाथ और सांपनाथ में से किसी एक को चुनने की दुविधा नहीं रहेगी। उन्होंने इस कन्वेंशन के मकसद के प्रति कथाकार शीन हयात के समर्थन का संदेश भी पढ़ा।

प्रो. तुंगनाथ चौधरी ने कहा कि चुनाव के समय जातिवादी-सामंती शक्तियों के पक्ष में होने वाले धु्रवीकरण पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इस चुनाव में एकजुटता से वामपंथी दलों में नई ऊर्जा का संचार होगा। 

जसम के राष्ट्रीय पार्षद कवि सुमन कुमार सिंह ने कहा कि सत्ताधारी पार्टियों के दो मोर्चों के विरुद्ध वाममोर्चा ही असली तीसरा मोर्चा है। 

कन्वेंशन में मौजूद आरा से भाकपा-माले उम्मीदवार क्यामुद्दीन ने कहा कि भाकपा-माले के नेता-कार्यकर्ता सांप्रदायिकता, अपराध, स्त्रियों के उत्पीड़न, व्यवसायियों की हत्या, सड़क, बिजली, स्वास्थ्य आदि सवालों पर साल के तीन सौ पैसठों दिन संघर्ष करते रहते हैं। चुनाव में उनकी जीत से विधानसभा के भीतर भी जनता के सवालों पर संघर्ष हो सकेगा। 

जलेस के बालरूप शर्मा, सीपीआई-एम के आरा नगर कमेटी सदस्य वैद्यनाथ पांडेय, कवि केडी सिंह, राजेश राजमणि, कवि संतोष श्रेयांश, अरविंद अनुराग, सतीश कुमार राणा ने भी इस मौके पर अपने विचार रखे। 

कन्वेंशन में जनकवि कृष्ण कुमार निर्मोही ने अपने चुनावी जनगीतों और शायर कुर्बान आतिश ने अपनी गजल को सुनाया।

आशुतोष कुमार पांडेय ने कन्वेंशन का तीन सूत्री प्रस्ताव पढ़ा। पहला प्रस्ताव वामपंथी उम्मीदवारों के समर्थन का था। दूसरा प्रस्ताव एफटीआईआई के छात्रों के आंदोलन के सौ दिन पूरा होने से संबंधित था। उनके आंदोलन के समर्थन में सभागार से बाहर एक पोस्टर भी लगाया गया था, जिस पर लेखक-संस्कृतिकर्मियों और राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हस्ताक्षर किए। तीसरे प्रस्ताव में आरएसएस से जुड़े संगठनों द्वारा प्रगतिशील, विवेकवादी बुद्धिजीवियों पर हो रहे हमले का हर स्तर से प्रतिवाद तेज करने की अपील की गई थी। 

कन्वेंशन में कवि जर्नादन मिश्र, अरुण शीतांश, आदित्य नारायण, रविशंकर सिंह, हरिनाथ राम, मिथिलेश जी, दीनानाथ सिंह, श्रमिक नेता यदुनंदन चौधरी, छात्र नेता अजित कुशवाहा, पत्रकार प्रशांत, शमशाद, रंगकर्मी अरुण प्रसाद, अमित मेहता, विजय मेहता, रामदास राही, बनवारी राम, रामकुमार नीरज, किशोर कुणाल, संजय कुमार, माले के नगर सचिव दिलराज प्रीतम, राजेंद्र यादव आदि भी मौजूद थे। 








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